वोटिंग अधिकार एक ऐसा मूलभूत नागरिक अधिकार है जो एक लोकतंत्र की जान है। वोटिंग अधिकार, जिसे मतदान का अधिकार भी कहा जाता है, वह एक नागरिक को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देता है। इसे मतदान का अधिकार भी कहते हैं, और यह केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी है।
भारत के संविधान ने 1950 में सभी 21 साल से अधिक उम्र के नागरिकों को वोट डालने का अधिकार दिया। बाद में 1989 में उम्र सीमा 18 साल कर दी गई, ताकि युवाओं को भी राष्ट्र के भविष्य के निर्माण में हिस्सा लेने का मौका मिले। यह अधिकार किसी भी धर्म, जाति, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं दिया जाता। यहाँ तक कि अगर आप गरीब हैं, अशिक्षित हैं या शहर के बाहर रहते हैं, तो भी आपका वोट बराबर है।
वोटिंग अधिकार के बिना लोकतंत्र बस एक शब्द होता। जब आप वोट डालते हैं, तो आप सीधे तौर पर यह फैसला करते हैं कि कौन आपके लिए कानून बनाएगा, कौन शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था करेगा, और कौन आपकी जमीन, पानी और बिजली के मुद्दों को सुलझाएगा। इस अधिकार को अनदेखा करना वैसा ही है जैसे आप अपनी आवाज़ दबा दें। अगर आपको लगता है कि सरकार आपकी बात नहीं सुनती, तो आपको वोट नहीं देना चाहिए — बल्कि आपको वोट देना चाहिए और उस वोट के जरिए दबाव बनाना चाहिए।
यहाँ आपको ऐसे ही कई ऐतिहासिक और वर्तमान घटनाओं के बारे में जानकारी मिलेगी जो दिखाती हैं कि वोटिंग अधिकार कैसे भारत की राजनीति को आकार देता है। चाहे वह एशिया कप में भारत की जीत हो, या फिर बुलडोजर के बयानों का राजनीतिक असर, या फिर पैरालंपिक में एक 17 साल की लड़की का ब्रॉंज पदक — सब कुछ एक ही बात पर टिका है: वोटिंग अधिकार। जब आप वोट देते हैं, तो आप अपने देश के भविष्य का निर्माण कर रहे होते हैं। यहाँ आपको उन खबरों का संग्रह मिलेगा जो इसी अधिकार के बारे में बात करती हैं — उन लोगों की कहानियाँ जिन्होंने इस अधिकार को लड़कर पाया, और उन चुनावों के रिकॉर्ड जिन्होंने देश का रास्ता बदल दिया।
निर्वाचन आयोग ने 12 राज्यों में वोटर लिस्ट सुधार के लिए बूथ स्तरीय अभियान शुरू किया है, जिसमें 51 करोड़ मतदाताओं को शामिल किया गया है। ड्राफ्ट लिस्ट 9 दिसंबर को जारी होगी, और अंतिम लिस्ट 7 फरवरी, 2026 को जारी की जाएगी।