पश्चिम बंगाल में चुनावी वातावरण तनाव से भर गया है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 30 अक्टूबर 2025 को कोलकाता में एक संवाददाता सम्मेलन में निर्वाचन आयोग (ईसीआई) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर गंभीर आरोप लगाया है — विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के नाम पर हजारों मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं। ये हेराफेरी, टीएमसी के अनुसार, एक ‘मौन अदृश्य हेराफेरी’ है, जिसका लक्ष्य चुनाव के नतीजे को नियंत्रित करना है। ये आरोप बस शब्दों का खेल नहीं, बल्कि आंकड़ों के साथ साबित किए गए हैं।
एक क्षेत्र में 717 से घटकर 140 मतदाता
टीएमसी के प्रवक्ता और पश्चिम बंगाल प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने दावा किया कि उन्होंने 2002 की मतदाता सूची और ईसीआई की वेबसाइट पर अपडेट की गई सूची की तुलना की है। एक विधानसभा क्षेत्र में, 2002 में 717 मतदाता थे — अब वो संख्या घटकर केवल 140 हो गई है। ये लगभग 80% की गिरावट है। क्या इतने सारे लोग एक साथ मर गए? या फिर, उन्हें जानबूझकर हटा दिया गया? घोष ने कहा, "इसके पीछे कोई स्वाभाविक कारण नहीं है। ये एक योजनाबद्ध अभियान है।"
चकदह में बीएलओ के नाम भी गायब
नदिया जिले के चकदह ब्लॉक में एक और अजीब बात सामने आई। यहां 322 बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) हैं — जिनका काम है मतदाता सूची की सही जांच करना। लेकिन जब टीएमसी ने इनमें से 13 के नाम 2002 की सूची में ढूंढ़ने की कोशिश की, तो वे वहां नहीं मिले। यानी, वो लोग जो मतदाता सूची की निगरानी कर रहे हैं, खुद ही उस सूची में शामिल नहीं हैं। ब्लॉक विकास अधिकारी समीरन कृष्ण मंडल ने इसे पुष्टि किया। ये नहीं है कि एक या दो लोग भूल गए — ये एक नमूना है।
इसी ब्लॉक के मसरा माठपाड़ा गांव में एक और घटना उजागर हुई। रोनी अधिकारी, जो एक विद्यालय के शिक्षक और बीएलओ हैं, का नाम 2002 की सूची में नहीं था। उनके माता-पिता, पुष्पारानी अधिकारी और दुलाल अधिकारी, ने 2016 में अवैध दस्तावेज बनवाए थे। ये कहानी एक बूथ की नहीं, एक प्रणाली की है।
2003 की सूची का इस्तेमाल: असंगति या अनुचित नियम?
कुलपी विधानसभा क्षेत्र में और भी गड़बड़ी है। ईसीआई ने कुछ बूथों के लिए 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाया है — जबकि ये बूथ 2002 की सूची से शामिल नहीं थे। टीएमसी का कहना है कि एक ही राज्य में अलग-अलग समय की सूचियों का इस्तेमाल करना असंभव है। ये गड़बड़ी किसी अनियमितता की नहीं, बल्कि एक जानबूझकर बनाई गई असमानता है।
टीएमसी का डर: सीएए-एनआरसी का पहला चरण?
टीएमसी ने इस पूरी प्रक्रिया को निर्वाचन आयोग की ओर से लागू किए जा रहे सीएए-एनआरसी के पहले चरण के तौर पर देखा है। अभिषेक बनर्जी ने सवाल उठाया — अगर बांग्लादेश से घुसपैठ का डर है, तो पूर्वोत्तर के पांच राज्यों — असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और नागालैंड — में एसआईआर क्यों नहीं किया जा रहा? ये सवाल बहुत ज्यादा गहरे हैं। उन्होंने कहा, "2002 में एसआईआर दो साल चला। अब दो महीने में इतनी बड़ी कवायद कैसे हो गई?"
भाजपा की प्रतिक्रिया: झूठ, हिंसा और डर
भाजपा नेता सुकांत मजूमदार ने इन आरोपों को "झूठी चिंता" बताया। उन्होंने अभिषेक बनर्जी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला बोला: "वो बंगाल में भंडालिजम शुरू करना चाहते हैं।" मजूमदार ने कहा कि टीएमसी सीएए के बारे में गलत जानकारी फैला रही है और हिंसा भड़काने की कोशिश कर रही है — जैसा कि मुर्शिदाबाद में ट्रेन जलाने के दौरान हुआ था।
उन्होंने आरोप लगाया कि बीएलओ डर रहे हैं — टीएमसी के लोग उनके परिवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए, वे निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर पा रहे। ये बात अजीब है। अगर बीएलओ डरे हुए हैं, तो उनके नाम 2002 की सूची में क्यों नहीं हैं? डर का कारण तो वो खुद हैं — जो अवैध रूप से मतदाता सूची में शामिल हुए हैं।
क्या ये सिर्फ पश्चिम बंगाल का मामला है?
नहीं। ईसीआई ने 12 राज्यों में एसआईआर शुरू किया है। लेकिन पश्चिम बंगाल में ये सबसे तीव्र है। क्यों? क्योंकि यहां राजनीति बहुत ज्यादा जुड़ी हुई है। टीएमसी के पास 2021 में बड़ी जीत हुई थी। अगले चुनाव में उनकी स्थिति अस्थिर है। भाजपा तेजी से बढ़ रही है। अब जो भी मतदाता हटाया जाए — चाहे वो अवैध हो या वैध — वो एक राजनीतिक निशाना बन जाता है।
अगला कदम क्या होगा?
टीएमसी ने ईसीआई को एक नोटिस भेज दिया है। उन्होंने एसआईआर को रोकने की मांग की है। अगर ईसीआई जवाब नहीं देता, तो टीएमसी अदालत में जा सकती है। भाजपा तैयार है — वो कहते हैं कि ये सिर्फ चुनावी नियमों की बात है। लेकिन लोग अब नहीं मान रहे।
एक गांव के एक बूथ के बीएलओ के नाम की गायबी — ये छोटी बात लगती है। लेकिन जब ये लाखों बार हो रहा हो, तो ये एक राष्ट्रीय आपात स्थिति बन जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
एसआईआर क्या है और ये क्यों जरूरी है?
एसआईआर (विशेष गहन पुनरीक्षण) निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूची में गलत या दोहरे नाम हटाने की प्रक्रिया है। ये तब जरूरी होती है जब अवैध रूप से दर्ज किए गए नाम, जैसे मृत व्यक्ति या घुसपैठिये, चुनाव में भाग लेने की कोशिश करें। लेकिन इसका दुरुपयोग हो सकता है, अगर वैध मतदाताओं को भी हटा दिया जाए।
क्या टीएमसी के आरोप सही हैं?
अभी तक कोई आधिकारिक जांच नहीं हुई है, लेकिन टीएमसी ने आंकड़े पेश किए हैं — जैसे 2002 से 2025 तक एक क्षेत्र में 717 से 140 मतदाताओं की गिरावट। इसके साथ ही बीएलओ के नाम गायब होने का तथ्य भी अजीब है। ये संकेत हैं कि कुछ गलत हो रहा है।
2003 की सूची का इस्तेमाल क्यों असंगत है?
2002 की मतदाता सूची पश्चिम बंगाल में आधिकारिक आधार है। 2003 की सूची का इस्तेमाल तभी होता है जब 2002 की उपलब्ध न हो। लेकिन अगर कुछ बूथों के लिए 2002 की और कुछ के लिए 2003 की सूची इस्तेमाल की जा रही है, तो ये एक असमान व्यवस्था है — जो चुनाव के निष्पक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है।
क्या ये सीएए-एनआरसी का हिस्सा है?
सीएए और एनआरसी का सीधा संबंध नहीं है, लेकिन इस प्रक्रिया का तरीका बहुत समान है — जैसे नाम हटाना, दस्तावेज जांच, और निर्वाचन सूची में असंगति। टीएमसी का डर ये है कि ये एक छोटा प्रयोग है, जिसके बाद एनआरसी लागू हो सकती है। अगर ये सही हुआ, तो लाखों लोग अपना मतदान का अधिकार खो सकते हैं।
निर्वाचन आयोग क्या कर रहा है?
ईसीआई ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। वे कहते हैं कि एसआईआर सभी राज्यों में समान रूप से चल रही है। लेकिन पश्चिम बंगाल में आरोप इतने गंभीर हैं कि आयोग को जल्द से जल्द एक स्वतंत्र जांच समिति बनानी चाहिए — न कि सिर्फ दावों को नजरअंदाज करना।
मतदाता अपना नाम चेक कैसे करें?
मतदाता अपना नाम https://electoralsearch.in पर ऑनलाइन चेक कर सकते हैं। यदि नाम गायब है या गलत है, तो वे ईसीआई के ऑनलाइन फॉर्म पर एक आपत्ति दर्ज कर सकते हैं। लेकिन अगर आप बूथ स्तरीय अधिकारी हैं या आपका परिवार गांव का हिस्सा है, तो आपको अपने नाम की जांच करने के लिए आपके क्षेत्र के विधानसभा अधिकारी से संपर्क करना चाहिए।