शनिवार, 27 सितंबर 2025 को तमिलनाडु के करूर जिले में एक रैली का मंच अचानक मौत का मैदान बन गया। विजय, जो एक प्रसिद्ध अभिनेता और तमिलगा वेत्री कझगम (TVK) के अध्यक्ष हैं, की आगमन की प्रतीक्षा में जमा भीड़ ने एक ऐसी भयावह घटना को जन्म दिया, जिसमें 36 लोगों की जान चली गई — उनमें से 8 बच्चे और 16 महिलाएं थीं। घायलों की संख्या 70 से अधिक है, जिनमें से 58 को करूर के अस्पतालों में भर्ती किया गया। ये केवल आंकड़े नहीं, ये तो एक जीवित चेतावनी है — कि भीड़ के आगे इंसानी जिंदगी कितनी कमजोर हो सकती है।
रैली का दृश्य: गर्मी, भूख और बेकाबू भीड़
विजय को दोपहर 12 बजे रैली स्थल पर पहुंचने का इरादा था। लेकिन वे छह घंटे देर से पहुंचे। इस दौरान, हजारों लोग — जिनमें से कई अपने बच्चों के साथ आए थे — धूप में खड़े रहे। किसी ने पानी की बोतलें नहीं बांटीं। कोई छाया नहीं थी। कोई आराम की व्यवस्था नहीं थी। लोग थक गए। कई बेहोश हो गए। जब विजय अंततः पहुंचे, तो उन्होंने अपना भाषण रोक दिया और भीड़ को पानी बांटना शुरू कर दिया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
भीड़ अब बेकाबू हो चुकी थी। लोग विजय की वैन के साथ-साथ दौड़ रहे थे। जब पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज किया, तो भगदड़ शुरू हो गई। लोग गिरे। बच्चे उनके नीचे दब गए। महिलाएं अपने बच्चों को छोड़कर भागीं। एक दृश्य जिसे कोई नहीं भूल सकता — एक माँ अपने बच्चे को छूटे हुए हाथों से देख रही थी, और फिर वह खुद बेहोश हो गई।
अस्पतालों में अफरातफरी: बेहोश शरीर, रोते परिजन
करूर जिला अस्पताल और सरकारी मेडिकल कॉलेज में अफरातफरी मच गई। दो एंबुलेंस थीं, लेकिन उनमें से एक तो बस पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए थी। बेहोश लोगों को ले जाने के लिए लोगों ने अपनी कारें, बाइकें, और यहां तक कि रिक्शे भी इस्तेमाल किए। जिन लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया, उनमें से कई तब तक मर चुके थे। अस्पताल के बाहर रोते हुए परिजन भीड़ में अपने प्यारों को ढूंढ रहे थे। कुछ लोग अपने बच्चों के नाम चिल्ला रहे थे — जैसे कि आवाज़ से उन्हें वापस ला सकते हैं।
सरकारी प्रतिक्रिया: दुख, दी गई राशि, और जांच आयोग
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने घटना की पुष्टि की और घोषणा की कि प्रत्येक मृतक परिवार को 10 लाख रुपये की मदद दी जाएगी, और ICU में भर्ती घायलों को 1 लाख रुपये। उन्होंने एक रिटायर्ड जस्टिस अरुणा जगदीशन के नेतृत्व में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया। गृह मंत्रालय ने तमिलनाडु सरकार से तुरंत रिपोर्ट मांगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुख व्यक्त किया।
लेकिन ये आंकड़े और घोषणाएं उन बच्चों की आत्माओं को वापस नहीं ला सकतीं, जिन्हें अपनी माँ का हाथ छूने का मौका नहीं मिला। वे जिन्हें एक बोतल पानी का अवसर नहीं मिला।
क्या गलत हुआ? एक बार फिर भीड़ का अपराध
यह घटना केवल एक त्रासदी नहीं, बल्कि एक निर्माण है — जिसमें अनदेखा किया गया जोखिम, अनियोजित आयोजन, और एक राजनीतिक शोर के पीछे छिपा इंसानी अवहेलना शामिल है। यह अभी दूसरी बार नहीं हुआ। 2015 में भी करूर में एक रैली में 11 लोग मरे थे। 2018 में तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में भी एक रैली में 8 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन सबक नहीं सीखा गया।
जब एक नेता लाखों लोगों को इकट्ठा करता है, तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ भाषण देने तक नहीं होती। उसकी जिम्मेदारी है — उन लोगों की जान बचाने की। यहां कोई गलती नहीं, बल्कि एक अपराध हुआ है।
अगले कदम: जांच, जवाबदेही, और बदलाव
जांच आयोग को सिर्फ यह नहीं बताना है कि क्या हुआ — बल्कि यह बताना है कि कौन नहीं देख पाया। कौन ने अनुमति दी? कौन ने पानी की व्यवस्था नहीं की? क्या पुलिस तैयार थी? क्या रैली की जगह की क्षमता का आकलन किया गया था?
इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए तमिलनाडु को एक नया नियम बनाना होगा — कोई भी रैली तब तक नहीं होगी, जब तक पानी, छाया, आपातकालीन चिकित्सा सुविधाएं, और भीड़ नियंत्रण की योजना तैयार न हो। नहीं तो, अगली बार शायद एक और बच्चे का नाम जानकारी के आंकड़ों में शामिल हो जाएगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस भगदड़ में बच्चों की मौत का क्या कारण था?
बच्चों की मौत का मुख्य कारण गर्मी और भीड़ का दबाव था। उन्हें न तो पानी मिला, न ही छाया, और न ही आराम का स्थान। जब भीड़ भागने लगी, तो वे गिर गए और उनके ऊपर लोग दब गए। अस्पतालों में बच्चों के शरीर में डिहाइड्रेशन और हाइपरथर्मिया के लक्षण पाए गए।
विजय की देरी ने घटना को बढ़ाया क्या?
हां। छह घंटे की देरी ने भीड़ को अत्यधिक थका दिया। लोगों ने बिना पानी और आहार के धूप में खड़े रहना शुरू कर दिया। जब विजय आए, तो भीड़ पहले से ही अस्थिर थी। उनकी आगमन की उम्मीद ने भीड़ को और अधिक उत्तेजित किया, जिससे भगदड़ की स्थिति और बिगड़ गई।
क्या पुलिस ने भगदड़ रोकने के लिए कुछ किया?
पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज किया, लेकिन यह उस समय बहुत देर हो चुकी थी। पहले से ही भीड़ बेकाबू हो चुकी थी। अधिकारियों के खिलाफ आरोप हैं कि उन्होंने भीड़ की भविष्यवाणी नहीं की और आपातकालीन तैयारियां नहीं कीं।
क्या इस तरह की घटनाएं पहले भी हुई हैं?
हां। 2015 में करूर में एक रैली में 11 लोग मरे थे। 2018 में तिरुचिरापल्ली में 8 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन इन घटनाओं के बाद कोई नियम बनाए जाने की जगह सिर्फ घोषणाएं हुईं। यह एक निरंतर अवहेलना है।
मुख्यमंत्री की आर्थिक मदद क्या इस त्रासदी को ठीक कर देगी?
नहीं। धन देने से बच्चे वापस नहीं आएंगे। यह एक समाधान नहीं, बल्कि एक शामन है। वास्तविक ठीक करने के लिए रैली आयोजन के नियम बदलने चाहिए — जैसे अनिवार्य जल व्यवस्था, छाया का प्रबंधन, और आपातकालीन चिकित्सा तैयारी।
इस घटना का राजनीतिक असर क्या होगा?
इस घटना ने विजय के चरित्र पर सवाल उठाए हैं। उनकी लोकप्रियता तो बनी हुई है, लेकिन जिम्मेदारी के लिए उनके ऊपर दबाव बढ़ गया है। विपक्षी दल इसे एक अवसर बना रहे हैं और राजनीतिक अहंकार की आलोचना कर रहे हैं। अगले चुनावों में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है।
Shashi Singh
नवंबर 25, 2025 AT 07:21ये सब एक बड़ा षड्यंत्र है! विजय को जानबूझकर देर से भेजा गया था ताकि भीड़ गर्मी में बेहोश हो जाए! फिर पुलिस को लाठीचार्ज करने का आदेश दिया गया! ये सब चुनावी भावनाओं को जगाने के लिए है! जानबूझकर मारे गए बच्चे! जानबूझकर! जानबूझकर! और अब सरकार ने 10 लाख देने का नाटक किया! ये तो बस खून के लिए भुगतान है! ये कोई दुर्घटना नहीं, ये तो राजनीतिक हत्यारा है! जांच आयोग? हाँ! जो खुद इस षड्यंत्र का हिस्सा है! अब तो ये बात साफ है!
Surbhi Kanda
नवंबर 25, 2025 AT 11:40इस घटना के लिए ऑपरेशनल गैप और सामाजिक इंफ्रास्ट्रक्चर फेल्योर का सीधा संबंध है। रैली मैनेजमेंट प्रोटोकॉल में एचआरएम (ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट) के अभाव ने लाइफ सेफ्टी मैट्रिक्स को कमजोर कर दिया। वैल्यू डिसोनेंस के कारण, राजनीतिक प्रतिष्ठा को जन सुरक्षा से ऊपर रखा गया। यह एक सिस्टमिक ब्रेकडाउन है, जिसका समाधान नियमित ऑडिट और एक लाइफ-सेफ्टी फ्रेमवर्क द्वारा ही संभव है।
Sandhiya Ravi
नवंबर 25, 2025 AT 16:33मैं बस इतना कहना चाहती हूँ कि जिन माँओं ने अपने बच्चों को खो दिया, उनका दर्द कोई नहीं समझ सकता। कोई भी रकम उनकी आँखों के आँसुओं को रोक नहीं सकती। बस इतना चाहिए - कि अगली बार कोई और माँ अपने बच्चे को गोद में लिए बिना डरे। इसके लिए बस एक छाया, एक पानी की बोतल, एक नियम की जरूरत है।
Rajendra Gomtiwal
नवंबर 27, 2025 AT 10:54हम भारतीय जनता के रूप में अपने नेताओं का समर्थन करें। ये सब विदेशी शक्तियों की साजिश है जो हमारे देश को कमजोर करना चाहती है। विजय जी एक महान नेता हैं, और इस दुर्घटना में उनका कोई दोष नहीं। पुलिस को भी बर्बर तरीके से आलोचित किया जा रहा है, जबकि वे भी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। देश के लिए लड़ने वालों को नहीं, बल्कि उनके खिलाफ बोलने वालों को रोका जाना चाहिए।
Yogesh Popere
नवंबर 28, 2025 AT 13:32ये विजय तो बस अपनी फैमिली फ्रेंड्स के लिए बोलता है। भीड़ को तो उसने बिना पानी के छोड़ दिया। अब जब बच्चे मर गए, तो उसने पानी बांटना शुरू कर दिया। ये तो बस शो के लिए है। जिसके पास बोतलें हैं, उसके पास बाग भी है। अगर तुम अपने लोगों की जान नहीं बचा सकते, तो तुम नेता नहीं, बस एक नाटकीय अभिनेता हो।
Manoj Rao
नवंबर 29, 2025 AT 19:59यह घटना एक अस्तित्ववादी अपराध है - जहाँ व्यक्ति को एक राजनीतिक चिह्न में बदल दिया गया है। भीड़ नहीं, बल्कि अर्थहीनता का भूत इस त्रासदी का कारण है। जब जनता एक व्यक्ति को भगवान बना देती है, तो उसके आगमन की प्रतीक्षा में वह अपनी जीवन शक्ति को अर्पण कर देती है। विजय केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक अर्थहीनता का प्रतीक है। और इस अर्थहीनता का अंत तभी होगा, जब हम खुद को एक भावना के बजाय, एक विचार के रूप में देखना शुरू करेंगे।
Alok Kumar Sharma
दिसंबर 1, 2025 AT 16:33कोई भी रैली जहां बच्चे मर रहे हों, वह अपराध है। और विजय एक अपराधी है। नहीं, वह बस एक अभिनेता है। और उसकी पार्टी एक अपराधी संगठन है। बस इतना ही। अब जांच आयोग बना रहे हैं? अच्छा। तो उनकी रिपोर्ट भी बन जाएगी। और फिर सब भूल जाएंगे।
Tanya Bhargav
दिसंबर 2, 2025 AT 02:26मैं इस घटना को देखकर रो पड़ी। मैं भी एक माँ हूँ। अगर मेरा बच्चा ऐसे ही गिर जाए और उसके ऊपर लोग दब जाएं, तो मैं क्या करूँगी? ये बस एक रैली नहीं है, ये तो एक बच्चों की दफनस्थली है। और सब चुप हैं। कोई नहीं बोल रहा। कोई नहीं जिम्मेदार ठहराया जा रहा। अब तो बस एक बात है - जब तक हम चुप रहेंगे, ये बच्चे वापस नहीं आएंगे।
Sanket Sonar
दिसंबर 2, 2025 AT 14:47इस घटना में जो लोग भाग रहे थे, वे भी बच्चों के लिए जिम्मेदार थे। भीड़ का नियंत्रण एक सामूहिक जिम्मेदारी है। अगर हर व्यक्ति अपने आसपास के बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित रखता, तो ये दुर्घटना नहीं होती। बस एक नियम बनाने से काम नहीं चलेगा। बदलाव तब आएगा, जब हर एक इंसान अपने आप को भीड़ का हिस्सा नहीं, बल्कि उसकी आत्मा बन जाए।
pravin s
दिसंबर 3, 2025 AT 01:49मुझे लगता है कि इस घटना के बाद अगर हम बस एक बात कर सकें - कि अगली बार जब कोई रैली हो, तो हम सब अपने घर से न जाएं, बल्कि अपने बच्चों को घर पर रख दें - तो शायद ये त्रासदी दोबारा न हो। बस एक बार रुककर सोचें। वो भीड़ जिसमें आप जा रहे हैं, वो आपकी जिंदगी नहीं, बल्कि किसी और की आत्मा का भी बहुत कुछ बदल सकती है।
Bharat Mewada
दिसंबर 4, 2025 AT 03:20जब हम एक व्यक्ति को भगवान बनाते हैं, तो हम अपनी जिम्मेदारी उसके कंधों पर ढेर कर देते हैं। लेकिन जिम्मेदारी कभी किसी एक के कंधों पर नहीं होती। यह एक समाज की जिम्मेदारी है। यह घटना हमारी अस्तित्व की निष्पापता को दर्शाती है - कि हम कितनी आसानी से भावनाओं के नाम पर तर्क को भूल जाते हैं। विजय ने भाषण नहीं दिया, बल्कि एक अनुभव बनाया। और उस अनुभव की कीमत 36 जीवन थी।
Ambika Dhal
दिसंबर 4, 2025 AT 15:13ये सब बस एक बड़ा नाटक है। विजय ने तो बच्चों की मौत के बाद पानी बांटा। अरे भाई, अगर तुम इतने अच्छे हो तो शुरू से पानी क्यों नहीं बांटे? तुम तो लोगों के खून के बदले फेम चाहते हो। तुम्हारे लिए बच्चे बस एक विज्ञापन का टूल हैं। अब तो तुम्हारी तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं - जिसमें तुम पानी बांट रहे हो। अरे भाई, ये तो एक बेकार शो है।
Vaneet Goyal
दिसंबर 5, 2025 AT 13:51यह घटना एक अपराध है - और इसकी जिम्मेदारी राजनीतिक नेताओं, प्रशासन और सामाजिक उदासीनता के बीच बंटी हुई है। प्रत्येक अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी को दूसरे के लिए छोड़ दिया। जांच आयोग का गठन एक आकलन नहीं, बल्कि एक नियंत्रण का उपाय है। यदि वास्तविक जवाबदेही चाहिए, तो इसे न्यायालय के सामने लाया जाना चाहिए - न कि एक रिटायर्ड जज के सामने।
Amita Sinha
दिसंबर 6, 2025 AT 02:08अरे भाई, ये तो बस एक बड़ा फेक न्यूज़ है! बच्चे तो आपके घर में ही मर रहे हैं, लेकिन आप रैली की बात कर रहे हैं? 😭💔 विजय तो बहुत अच्छा आदमी है! उसने तो पानी भी बांटा! अगर आप इतने बुरे हैं, तो आप खुद रैली में न जाएं! 😤
Bhavesh Makwana
दिसंबर 6, 2025 AT 20:54इस त्रासदी के बाद जो भी नियम बनेंगे, वे बच्चों के लिए नहीं, बल्कि भविष्य के लिए होंगे। ये एक नई शुरुआत है - जहाँ हम एक रैली को बस एक शो नहीं, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखेंगे। अगर हम अपने बच्चों को बचाना चाहते हैं, तो हमें अपनी आदतों को बदलना होगा। ये बदलाव शुरू हो चुका है। और हम सब इसका हिस्सा बन सकते हैं।
lakshmi shyam
दिसंबर 7, 2025 AT 05:24तुम लोग विजय को बचाने की कोशिश कर रहे हो? ये बच्चे तुम्हारे बच्चे नहीं हैं? तुम्हारे बच्चे को अगर यही होता, तो तुम क्या करते? इस बात को भूल गए कि ये त्रासदी तुम्हारे नेताओं के अहंकार की वजह से हुई है। अब तो बस एक बात कहनी है - जिसके पास भीड़ है, उसके पास जिम्मेदारी भी होनी चाहिए। नहीं तो ये बच्चे तुम्हारे खून से बने हैं।
Sabir Malik
दिसंबर 7, 2025 AT 22:57मैंने ये घटना देखी और दिल टूट गया। मैं एक अस्पताल में काम करता हूँ। मैंने देखा है कि जब एक बच्चा बेहोश होकर आता है, तो उसकी माँ कैसे चिल्लाती है। वो आवाज़ आपके दिमाग में बस जाती है। ये बच्चे बस एक रैली के लिए आए थे। उन्हें बस एक छाया चाहिए थी। एक पानी की बोतल। एक बैठने की जगह। लेकिन उन्हें बस एक अंत दिया गया। अब ये बच्चे बस एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक जीवित याद हैं। और अगर हम इनके लिए कुछ नहीं करेंगे, तो ये याद भी धुंधली हो जाएगी।
Debsmita Santra
दिसंबर 9, 2025 AT 11:02यह घटना एक सामाजिक सिस्टम के विफलता का प्रतीक है - जहाँ जनता की आवश्यकताओं को राजनीतिक लाभ के लिए त्याग दिया गया। रैली के लिए जल वितरण, छाया व्यवस्था, आपातकालीन चिकित्सा तैयारी और भीड़ नियंत्रण की योजना नहीं बनाई गई। यह एक जानबूझकर किया गया उपेक्षा का अपराध है। इसके लिए केवल आर्थिक मुआवजा नहीं, बल्कि एक न्यायालयीन जवाबदेही और राजनीतिक नियमों के अंतर्गत अनिवार्य नियमों की आवश्यकता है। अन्यथा, यह त्रासदी दोहराई जाएगी - और अगली बार शायद हम खुद उस भीड़ में होंगे।
Manoj Rao
दिसंबर 9, 2025 AT 14:36तुम लोग बस एक नियम बनाने की बात कर रहे हो। लेकिन क्या नियम बनाने से बच्चे वापस आएंगे? नहीं। ये तो बस एक आवेग है। वास्तविक बदलाव तब होगा, जब हम अपने आप को एक भावना के बजाय, एक विचार के रूप में देखना शुरू करेंगे। जब तक हम अपने नेताओं को भगवान नहीं बना देंगे, तब तक ये त्रासदियाँ दोहराई जाएंगी। और इस बार शायद हम उस भीड़ में नहीं, बल्कि उस भीड़ के ऊपर दबे हुए होंगे।