संविधान की छठी अनुसूची: सीधे और साफ

अगर आप पूर्वोत्तर की खबरें पढ़ते हैं तो आपने "छठी अनुसूची" का नाम कई बार सुना होगा। यह शब्द डराने वाला नहीं है—बस भारत के उन हिस्सों के लिए एक खास कानूनी फ्रेमवर्क है जहां जनजातीय समुदायों की परंपरागत व्यवस्था और जमीन-सम्पदा का अधिकार सुरक्षित रखा गया है।

कहाँ लागू है और किसलिए बनाया गया?

छठी अनुसूची मुख्यतः असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम जैसे राज्यों के जनजातीय इलाकों पर लागू होती है। मकसद सरल था: स्थानीय परंपराओं और सामुदायिक कानूनों को बचाना, और विकास का निर्णय नज़दीकी संस्थाओं को देना ताकि स्थानीय लोग खुद तय कर सकें कि उन्हें किस तरह की योजनाएँ चाहिए।

यह व्यवस्था स्वायत्त क्षेत्र और स्वायत्त जिला परिषदों के जरिए काम करती है। इन परिषदों को कुछ खास विषयों पर कानून बनाने, कर वसूलने और स्थानीय अदालतें चलाने का अधिकार मिलता है—जैसे जमीन का प्रबंधन, जंगल, कृषि, गाँव-स्तर के विवाद और पारंपरिक नियम।

छठी अनुसूची के मुख्य अधिकार

स्वायत्त परिषदों को स्थानीय विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार मिलता है। वे छोटे कानून बना सकती हैं, पंचायत या गाँव परिषदें गठित कर सकती हैं, और कुछ सीमित कर लगा सकती हैं। पारंपरिक मामलों में उनकी अदालतें फैसला करती हैं—यह अदालतें अक्सर सौहार्दपूर्ण और त्वरित समाधान देती हैं।

लेकिन ये पूरी आज़ादी नहीं है। राज्य और केंद्र की कुछ निगरानी रहती है। परिषदों के बनाए नियमों पर राज्य-सरकार के सहयोग और कभी-कभी निरीक्षण की जरूरत होती है। इसलिए अधिकार और जवाबदेही दोनों साथ चलते हैं।

उदाहरण के लिए, कर बटोरना तो परिषद कर सकती है, पर बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर या केंद्र-राज्य के बड़े कानूनों के साथ तालमेल बनाना भी ज़रूरी होता है।

छठी अनुसूची के तहत पारंपरिक जीवन-संरचना का संरक्षण होता है, पर साथ में विकास की चुनौतियाँ भी आती हैं—बुनियादी सेवाएँ, फंडिंग की कमी, और प्रशासनिक क्षमता बढ़ाने की जरूरत आम शिकायतें हैं।

क्या यह व्यवस्था हर समस्या का हल है? नहीं। कई बार संसाधन कम होने से निर्णय अमली जामा नहीं पहना पाते। वहीं, स्थानीय नेता और समुदाय मिलकर काम करें तो परिणाम तेज और प्रभावी होते हैं।

आप इसका हिस्सा कैसे बन सकते हैं? पहले तो अपने इलाके की स्वायत्त परिषद के निर्णयों और मीटिंग नोटिस पर नज़र रखें। मतदान करें, स्थानीय प्रतिनिधियों से सवाल पूछें और पारदर्शिता मांगे। विकास परियोजनाओं में स्थानीय भागीदारी बढ़ाएँ—यही असरदार रास्ता है।

छठी अनुसूची का मूल उद्देश्य अपनी भाषा, रीत-रिवाज और जमीन को सुरक्षित रखना है, साथ ही विकास के फ़ैसलों को लोकल बनाए रखना भी है। अगर आप पूर्वोत्तर या किसी संबंधित क्षेत्र में रहते हैं तो इसे समझना ज़रूरी है—क्योंकि यह सीधे आपके रोज़मर्रा के अधिकार और ज़िन्दगी से जुड़ा है।

लद्दाख पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की दिल्ली पुलिस द्वारा 'दिल्ली चलो पदयात्रा' के दौरान गिरफ्तारी
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लद्दाख पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की दिल्ली पुलिस द्वारा 'दिल्ली चलो पदयात्रा' के दौरान गिरफ्तारी

लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और लगभग 125 प्रदर्शनकारियों को दिल्ली पुलिस ने 1 अक्टूबर 2024 को सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में लिया। ये प्रदर्शनकारी 'दिल्ली चलो पदयात्रा' के भाग के रूप में लद्दाख से रवाना हुए थे। उनकी मांग थी कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए। इस हिरासत पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आईं हैं।