नवंबर 2025 में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ एक 19 मिनट 34 सेकंड का वीडियो, जिसमें बंगाली डिजिटल क्रिएटर सोफिक एसके और उनकी प्रेमिका दुस्तु सोनाली दिखाई दे रहे हैं, ने पूरे देश में डिजिटल सुरक्षा के बारे में चेतावनी भरी बहस शुरू कर दी। यह वीडियो सिर्फ एक निजी लम्हा नहीं था — यह एक अपराध का सबूत बन गया, और उसके शेयर करने वालों को भारतीय आईटी एक्ट 2000 की धारा 67ए के तहत 7 साल तक की जेल का खतरा है। यह मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत विवाद नहीं, बल्कि डिजिटल युग के अंधेरे पहलू का प्रतीक है — जहां भरोसा टूटता है, दोस्ती ब्लैकमेल में बदल जाती है, और एक फोन का पासवर्ड पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है।
वीडियो कैसे वायरल हुआ?
वीडियो का असली स्रोत एक ऐसा व्यक्ति था जिसे सोफिक और दुस्तु ने अपना करीबी दोस्त माना था — रूबल। दोनों के अनुसार, रूबल ने उनके फोन से वीडियो चुराया, और उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की। जब दंपत्ति ने उसकी बात नहीं मानी और उससे संबंध तोड़ दिए, तो उसने वीडियो को सोशल मीडिया पर फैला दिया। यह वीडियो 18 महीने पुराना था, लेकिन इसका असर तुरंत दिखा। लोगों ने इसे शेयर किया, मीम बनाए, और दोनों के खिलाफ नाम-निंदा शुरू कर दी।
कानून क्या कहता है?
आईटी एक्ट 2000 की धारा 67ए के तहत, यौन संबंधों को स्पष्ट रूप से दर्शाने वाली किसी भी सामग्री को ऑनलाइन शेयर करना एक गंभीर अपराध है। पहली बार के लिए 5 साल तक की जेल और ₹10 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। दोबारा अपराध करने पर यह सजा बढ़कर 7 साल हो जाती है। यह सिर्फ वीडियो बनाने वाले के लिए नहीं, बल्कि उसे शेयर करने, डाउनलोड करने या फॉरवर्ड करने वाले हर व्यक्ति के लिए लागू होता है। यही कारण है कि अधिकारियों ने जनता से अपील की है कि वे ऐसी सामग्री को देखने से पहले उसकी पुष्टि करें।
क्या वीडियो असली था?
यही सवाल अब पूरे देश में उठ रहा है। एएडीएचएन हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस की जांच में यह पाया गया कि वीडियो में कुछ दृश्य कोलकाता के एक घर के अंदर शूट किए गए थे, लेकिन कई हिस्से एआई-जनरेटेड थे। एडिटिंग में चेहरों को बदला गया, आवाज़ें मिलाई गईं, और कुछ एक्शन ऐसे थे जो वास्तविक जीवन में संभव नहीं थे। यह एक नया खतरा है — डीपफेक टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग। अब कोई भी व्यक्ति, बिना किसी वास्तविक वीडियो के, एक बदलाव या झूठी छवि बना सकता है और उसे जिंदगी भर के लिए नुकसान पहुंचा सकता है।
पीड़ितों की आवाज़
दुस्तु सोनाली ने एक निजी स्टोरी में लिखा, "मैं अब घर से बाहर नहीं निकल पा रही। मेरे बच्चे के स्कूल के अध्यापक मुझे देखकर फुसफुसाते हैं। मैं खुद को एक अपराधी समझने लगी हूं, जबकि मैं बलात्कार की शिकार हूं।" सोफिक एसके ने एक वीडियो में कहा, "हमने कभी इसे शेयर करने की इच्छा नहीं की। हम इसे अपने बीच का एक यादगार पल मानते थे। अब यह एक अपराध का दस्तावेज बन गया है।" उनके परिवार ने भी एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि "इस तरह की घटनाओं के खिलाफ कानून तो है, लेकिन इसका लागू होना बहुत धीमा है।"
डिजिटल युग का नया खतरा
यह मामला भारत में नवंबर 2025 में हुए चार बड़े वायरल वीडियो स्कैंडल्स में से एक था। लेकिन यह सबसे खतरनाक था — क्योंकि इसमें दो तकनीकें मिल रही थीं: निजी जीवन का अपराधी दुरुपयोग और एआई का धोखा। डिजिटल क्रिएटर्स, खासकर युवा महिलाएं, अब अपने फोन में एक वीडियो भी नहीं रख पा रहीं। एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क, जिसे "पोर्न-बॉट" कहा जाता है, इस तरह की सामग्री को बेचने और फैलाने के लिए सक्रिय है। उनका लक्ष्य है — नामी लोगों की छवि को नुकसान पहुंचाना, और उनके फॉलोअर्स को ट्रैफिक देना।
अगला कदम क्या है?
पश्चिम बंगाल पुलिस ने रूबल के खिलाफ एक अपराध रिपोर्ट दर्ज कर ली है। लेकिन उसकी गिरफ्तारी अभी तक नहीं हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि आईटी एक्ट के तहत जुर्माना और जेल का प्रावधान तो है, लेकिन जांच के लिए टेक्निकल सुविधाएं नहीं हैं। डिजिटल फॉरेंसिक्स यूनिट्स जहां हैं, वहां भी कम लोग हैं। इसलिए अगला कदम सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि तकनीकी भी होना चाहिए — जैसे फोन में एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का अनिवार्य उपयोग, और एआई-जनरेटेड कंटेंट को पहचानने वाले टूल्स का विकास।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या वीडियो देखने से भी कानूनी समस्या हो सकती है?
हां, अगर आप जानबूझकर एक अश्लील वीडियो डाउनलोड करते हैं या उसे किसी को भेजते हैं, तो आईटी एक्ट 2000 की धारा 67ए के तहत आप भी दोषी ठहराए जा सकते हैं। यह नियम उन लोगों के लिए भी लागू होता है जो इसे सिर्फ "देखने" के लिए खोलते हैं। अगर आपने इसे शेयर किया है, तो यह अपराध बन जाता है।
एआई-जनरेटेड वीडियो को पहचानने का तरीका क्या है?
एआई-जनरेटेड सामग्री की पहचान के लिए विशेषज्ञ तकनीकी टूल्स जैसे Deepware, Sensity या Google’s Video Integrity Project का उपयोग किया जाता है। ये टूल्स चेहरों की गति, आँखों की चमक और आवाज़ के अनुकूलन को विश्लेषित करते हैं। आम उपयोगकर्ता भी अगर कोई वीडियो असामान्य लगे — जैसे होंठ बिना आवाज़ के हिल रहे हों — तो उसे संदेह की नजर से देखें।
इस तरह के वीडियो लीक होने से बचने के लिए क्या करें?
अपने फोन के लिए एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन वाले ऐप्स का उपयोग करें। निजी वीडियो डिवाइस में ही रखें, क्लाउड पर नहीं। ब्लैकमेल करने वालों के खिलाफ तुरंत पुलिस या नेशनल साइबर क्राइम वॉच डिपार्टमेंट को सूचना दें। अपने डिजिटल फॉलोअर्स को भी चेताएं — किसी भी वीडियो को शेयर करने से पहले उसकी पुष्टि करें।
क्या यह मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत विवाद है?
नहीं। यह एक बड़े सामाजिक समस्या का एक उदाहरण है — जहां डिजिटल निजीत्व का कोई कानूनी संरक्षण नहीं है। ऐसे मामले हर महीने हो रहे हैं, लेकिन ज्यादातर निजी रूप से हल हो जाते हैं। इस मामले ने दिखाया कि एक दोस्त का विश्वासघात भी एक जीवन को बर्बाद कर सकता है।