जब किसी इलाके को "राज्य का दर्जा" मिलता है तो उसे संघ के भीतर पूरा राज्य माना जाता है। इसका मतलब है कि वहाँ अपनी विधानसभा, सरकार, और केंद्र के साथ विशेष संवैधानिक रिश्ते बनते हैं। ऐसे दर्जे से प्रशासनिक अधिकार, वित्तीय हिस्सेदारी और कानून बनाने की शक्तियाँ प्रभावित होती हैं — इसलिए यह सिर्फ नाम नहीं, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर असर डालता है।
भारतीय संविधान संसद को यह अधिकार देता है कि वह नए राज्य बनाए, सीमाएँ बदले या राज्यों का विलय करे। यह शक्ति मुख्यत: Article 2 और Article 3 में निहित है। सामान्य प्रक्रिया कुछ इस तरह होती है: कोई मांग उठती है → केंद्र उसे लेकर प्रस्ताव बनाता है → राष्ट्रपति राज्य विधानसभाओं की राय ले सकते हैं (यह राय बाध्यकारी नहीं होती) → संसद में संशोधन/अधिनियम पास होता है → राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद नया ढांचा लागू होता है।
ध्यान रखें: कोई सख्त चेकलिस्ट नहीं है। संवैधानिक प्रक्रिया और राजनीतिक निर्णयन दोनों मिलकर आख़िरी फैसला तय करते हैं।
राज्य बनने के निर्णय में ये कारक अक्सर देखे जाते हैं: जनसंख्या और घनत्व, प्रशासनिक सुविधा (क्या बड़े इलाके के प्रबंधन में दिक्कत है), आर्थिक क्षमता (क्या क्षेत्र ख़ुदखुशी से चल पाएगा), भाषा-सांस्कृतिक अलगाव, और सुरक्षा या सामरिक ज़रूरतें। कभी-कभी लंबी राजनीतिक मांग या जन आन्दोलन भी निर्णायक बन जाते हैं।
अगर कोई इलाका राज्य का दर्जा चाहता है तो आम तौर पर स्थानीय नेता और नागरिक कई कदम उठाते हैं — सार्वजनिक समर्थन जुटाना, मांग का आधिकारिक पत्र केंद्र/राज्य सरकार को भेजना, और प्रतिनिधियों से मसले पर चर्चा कराना। पर याद रखें: अंतिम फैसला संसद का होता है और वह राजनीतिक-राजनैतिक बहस के बाद आता है।
राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश (Union Territory) में फर्क भी समझना जरूरी है। राज्य के पास अपनी विधानसभा और वित्तीय स्वतंत्रता ज्यादा होती है, जबकि U.T. पर केंद्र का नियंत्रण अधिक रहता है और कभी-कभी वहाँ राष्ट्रपति या लेफ्टिनेंट गवर्नर का प्रशासन होता है। यह फर्क रोज़मर्रा की नीतियों, विकास फंड और कानून बनाने में दिखता है।
अंत में, अगर आप किसी स्थान के राज्य बनने की खबर या बहस पर नजर रखना चाहते हैं तो भरोसेमंद समाचार और संसद के नोटिस्स पर अपडेट देखें। यह टैग पेज "राज्य का दर्जा" से जुड़ी ताज़ा खबरें और विश्लेषण आपको इसी तरह के निर्णयों और विवादों के बारे में तुरंत बताएगा। क्या आपके इलाके से जुड़ी कोई मांग चल रही है? न्यूज़ और लोकप्रतिनिधियों की गतिविधियाँ पर नजर रखें — वही असल में फैसला प्रभावित करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट 8 अगस्त को जम्मू-कश्मीर की राज्य का दर्जा बहाली के मुद्दे पर सुनवाई करेगा, छह साल पहले अनुच्छेद 370 हटाया गया था। कोर्ट ने 2023 में सरकार को जल्द राज्य का दर्जा लौटाने को कहा था, लेकिन अब तक प्रक्रिया अधूरी है। याचिका में राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समयसीमा तय करने की मांग की गई है।