जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा: सुप्रीम कोर्ट में फिर गूंजा पुराना सवाल
अनुच्छेद 370 हटने के छह साल बाद भी जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा अभी तक बहाल नहीं हो सका है। इस मुद्दे पर अब एक बार फिर सुर्खियां बढ़ गई हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट 8 अगस्त को इस याचिका पर सुनवाई करने जा रहा है, जिसमें राज्य का दर्जा जल्दी बहाल करने की मांग की गई है। साल 2019 में जब अनुच्छेद 370 खत्म हुआ, तब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था और लद्दाख को अलग यूनियन टेरिटरी बना दिया गया था। इस बदलाव के बाद से ही राज्य के भविष्य और उसकी प्रशासनिक स्थिति को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
फरवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र के इस फैसले को सही माना, लेकिन कोर्ट ने सरकार को यह भी कहा कि 'राज्य का दर्जा जितनी जल्दी हो सके, वापस दिया जाए'। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कोर्ट में भरोसा दिया था कि सरकार जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करेगी, हालांकि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश ही रहेगा। इसके बावजूद, अब तक कोई ठोस तारीख या रोडमैप सामने नहीं आया, जिससे जम्मू-कश्मीर के लोगों में मायूसी है।
अब जो याचिका दायर हुई है, उसमें साफ-साफ मांग की गई है कि सरकार जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की निश्चित टाइमलाइन पेश करे। जनहित याचिका में जहूर अहमद भट और एक अन्य याचिकाकर्ता शामिल हैं। ये लोग सुप्रीम कोर्ट के 2023 के आदेश के बावजूद हो रही देरी पर सवाल उठा रहे हैं और कोर्ट से आग्रह कर रहे हैं कि राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर स्पष्ट समयसीमा तय की जाए। वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के सामने इस याचिका का मुद्दा उठाया और कोर्ट ने इसे 8 अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर दिया है।

मानवाधिकार जांच आयोग की भी याद दिलाई
इस बहस के बीच अदालत ने 1980 के दशक से लेकर अब तक जम्मू-कश्मीर में हुए मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच के लिए एक आयोग बनाने की सिफारिश भी की थी। हालांकि, मामले का असल फोकस राज्य का दर्जा बहाल करने पर है। सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार ने जिसने खुद सुप्रीम कोर्ट के सामने वादा किया था, उसने अब तक क्या कदम उठाए हैं। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच में मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन शामिल रहेंगे, जो देखेंगे कि केंद्र सरकार का वादा कितना आगे बढ़ा।
जम्मू-कश्मीर की सियासत और आम जनता दोनों के लिए यह सुनवाई बेहद अहम है, क्योंकि राज्य का दर्जा केवल राजनीतिक अधिकार ही नहीं, बल्कि पहचान और संवैधानिक सम्मान से भी जुड़ा है। अब देखना होगा कि 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में आगे क्या रुख अपनाया जाता है और केंद्र से क्या जवाब मांगा जाता है।
MONA RAMIDI
अगस्त 6, 2025 AT 20:18ये सुनवाई तो बस एक बड़े नाटक का हिस्सा लग रही है! सरकार के वादे सुनकर दिल धड़कता है, पर असली कदम नहीं दिखते। जमीं पर कुछ ठोस नहीं हो रहा, बस हवाई शब्दों का बवंडर है। अब समय है कि जनता को दे दी जाए वह मान्यता जिसकी वो हक़दार है।
Vinay Upadhyay
अगस्त 15, 2025 AT 18:21बहाने बनाते- बनाते सुन्न हो गई ये अदालत।
Divyaa Patel
अगस्त 24, 2025 AT 16:25जागरूकता की आवाज़ें हमेशा से इस धरती पर गूँजती आई हैं।
जम्मू‑कश्मीर का राज्य‑दर्ज़ा केवल एक कागज़ी शब्द नहीं, बल्कि उस क्षेत्र के लोगों की पहचान का मूलाधार है।
जब 2019 में अनुच्छेद‑370 को हटाया गया, तो एक बड़े बदलाव का दरवाज़ा खुला, पर उस दरवाज़े के पीछे के सबसे अहम क़दम छूट गए।
सुप्रीम कोर्ट की 2023 की सलाह ने आशा की किरण जलाई, पर सरकार की निष्क्रियता ने उस आशा को धुंधला कर दिया।
जनता का मन अब दीवारों के सामने खड़ा है, जहाँ हर एक आवाज़ को सुना जाना चाहिए।
राज्य‑दर्ज़ा वापस मिलना केवल राजनीतिक अधिकार नहीं, बल्कि मानव गरिमा का भी सवाल है।
कितने साल बीत गए और अब भी वही सवाल दोहराया जा रहा है - कब सरकार अपना वादा निभाएगी?
इतिहास बताता है कि जब लोग एकजुट होते हैं, तो सरकार भी आड़ में नहीं रह पाती।
ऐसे में हम सभी को मिलकर इस मुद्दे को आगे बढ़ाना चाहिए, क्योंकि एक आवाज़ से बहुत कुछ नहीं बदलेगा।
सही समय पर सही कदम उठाने से ही सबको न्याय मिलेगा।
सच तो यही है कि लोकतंत्र की असली कसौटी तब आती है जब सत्ता में बैठे लोग जनता की पीड़ा को समझते हैं।
हमारी भावनाएं, हमारा संघर्ष, और हमारा आत्मविश्वास इस मुद्दे को क्षणभंगुर नहीं रहने देगा।
उम्मीद है कि इस सुनवाई में न्यायपालिका के न्यायिक प्रबन्धन से एक स्पष्ट दिशा‑निर्देश निकलेगा, जिससे सरकार को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होगा।
किसी भी लोकतांत्रिक प्रणाली में समयबद्धता बहुत महत्वपूर्ण है, और यह समय अब नहीं बदला जा सकता।
अंत में यही कहा जा सकता है कि हम सबको मिलकर इस लड़ाई को जीतने की कोशिश करनी चाहिए, तभी जम्मू‑कश्मीर को उसका उचित राज्य‑दर्ज़ा वापस मिल पाएगा।
Chirag P
सितंबर 2, 2025 AT 14:28मैं समझता हूँ कि इस मुद्दे ने कई लोगों को निराश किया है, पर हमें शांति और संवाद के साथ आगे बढ़ना चाहिए। सरकार को स्पष्ट टाइमलाइन देना चाहिए ताकि जनता को आशा मिले। इस चर्चा में सभी की भावनाओं का सम्मान करना जरूरी है।
Prudhvi Raj
सितंबर 11, 2025 AT 12:31अनुच्छेद‑370 हटने के बाद जम्मू‑कश्मीर की स्थिति बहुत जटिल हो गई है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में स्पष्ट आदेश मिलने की उम्मीद है।
Partho A.
सितंबर 20, 2025 AT 10:35वास्तव में, न्यायालय का यह कदम महत्वपूर्ण है और यह आशा करता है कि केंद्र शीघ्र कार्यवाही करेगा। सभी को इस प्रक्रिया में धैर्य रखना चाहिए।
Heena Shafique
सितंबर 29, 2025 AT 08:38बिल्कुल, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि राज्य‑दर्ज़ा जल्द‑से‑जल्द लौटाया जाए। फिर भी, सरकार की टाल‑मटोल अजीब ही कारीगरी दिखा रही है। आशा है इस बार वादे के साथ ठोस कदम भी आएँगे।
Mohit Singh
अक्तूबर 8, 2025 AT 06:41कितनी बार कहा गया है, फिर भी वही पुरानी कहानी दोहराती जा रही है। जनता की निराशा को शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। यह सोचना भी दर्द देता है कि कब तक इंतजार करना पड़ेगा।