परिवहन लागत रोज़मर्रा के व्यापार और सामान पहुंचाने का माहौल तय करती है। आप माल भेजते हों, घर के लिये सामान मंगवाते हों या सर्विस प्रोवाइडर हैं — ये खर्च सीधे कीमत और समय दोनों पर असर डालते हैं। अक्सर लोग पेट्रोल-डीज़ल की कीमत को ही मुख्य वजह मान लेते हैं, पर कच्चा सच थोड़ा और जटिल है।
सबसे पहले यह जानिए कि कौन-कौन सी चीज़ें कुल खर्च बनाती हैं। ईंधन खर्च और चालक का वेतन बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसके साथ वाहन मेंटेनेंस, टोल व टैक्स, बीमा और परमिट शुल्क जुड़ते हैं।
'लास्ट माइल' यानी आखिरी किलोमीटर की डिलीवरी अक्सर अपेक्षाकृत महंगी होती है क्योंकि इसमें समय और डिलीवरी की संख्या ज्यादा होती है। पैकेजिंग का आकार और वजन भी दर बढ़ा देता है। अंतरराष्ट्रीय शिपिंग में कस्टम क्लियरेंस और फ्रेट कंपनियों के अलग नियम भी लागत बढ़ाते हैं।
सीधा तरीका यह है: किसी यात्रा का कुल खर्च ÷ कुल परिवहित इकाई (जैसे टन या पीस)। उदाहरण: अगर एक ट्रक चलाने का पूरा खर्च ₹50,000 हुआ और उस ट्रक में 10 टन माल था, तो प्रति टन लागत ₹5,000 बनेगी। इसी तरह प्रति यूनिट दर निकालकर आप उत्पाद की कीमत में जोड़ सकते हैं।
कभी-कभी दूरी के आधार पर कीमत लगाते हैं — प्रति किलोमीटर दर × दूरी + हैंडलिंग चार्ज। बड़े ग्राहकों के लिये कंसोलिडेशन (मल्टी-शिपमेंट को एक साथ भेजना) कर के प्रति यूनिट लागत कम होती है।
रूट ऑप्टिमाइज़ेशन से ईंधन और समय दोनों बचते हैं। रूट प्लान करने वाले सॉफ्टवेयर (TMS) का इस्तेमाल करें और खाली लौटने वाली गाड़ियों को कम करें।
शिपमेंट कंसोलिडेशन और फुल ट्रक लोड (FTL) लेना अक्सर सस्ता पड़ता है बनाम छोटे-छोटे पार्सल। मल्टीमोडल शिफ्ट—जहां लंबी दूरी रेल या पानी से और आखिरी दूरी सड़क से पूरी हो—कई बार कुल खर्च घटा देता है।
ईंधन-कुशल वाहनों और नियमित मेंटेनेंस से माइलेज बेहतर होता है। पैकेजिंग को कॉम्पैक्ट रखें ताकि इकाइयों में ज्यादा माल समा सके। ट्रांसपोर्ट पार्टनर्स के साथ लॉन्ग-टर्म कॉन्ट्रैक्ट कर के दरों पर छूट मिल सकती है।
हर महीने या क्वार्टर में लागत का रिव्यू करें। टोल, परमिट और टेक्स बदलते रहते हैं—इन अपडेट्स को शिपिंग पॉलिसी में तुरंत शामिल करें। ईवी और ग्रीन लॉजिस्टिक्स की तरफ शिफ्ट करने से लंबी अवधि में ओपरेशनल लागत कम हो सकती है।
अगर आप व्यापारी या सप्लाइ चैन मैनेजर हैं, तो छोटे-छोटे बदलाव भी बड़े फायदे दे सकते हैं। इस टैग पेज पर जुड़े लेख पढ़ें ताकि हाल के रुझान, सरकारी नीतियाँ और बाजार की नई दरें आपको तुरंत मिलें।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हुई 55वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक में सभी पुरानी वाहनों की बिक्री पर 18% यूनिफॉर्म जीएसटी दर लागू करने की मंजूरी दी गई। इस निर्णय का उद्देश्य कराधान में एकरूपता लाना है, लेकिन इससे परिवहन की वहनीयता प्रभावित हो सकती है, खासकर मध्यवर्गीय भारतीयों के लिए। व्यापारिक पुनर्विक्रय पर लागू यह नया नियम उद्योग को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।