निर्जला व्रत: फायदे, नियम और भारत में इसकी पारंपरिक महत्ता

निर्जला व्रत एक निर्जला व्रत, ऐसा व्रत जिसमें कोई भी पानी या तरल पदार्थ नहीं पिया जाता. यह शुद्ध उपवास कहलाता है, जहाँ सिर्फ खाना ही नहीं, बल्कि पानी भी बर्जित होता है। यह व्रत भारत में कई धार्मिक अवसरों पर, खासकर नवरात्रि, शिवरात्रि और एकादशी के दिन किया जाता है, जहाँ शरीर की शुद्धि और आत्मा की ताकत को बढ़ाने का विश्वास है।

इस व्रत का अर्थ सिर्फ भूख नहीं, बल्कि जल सेवन निषेध, शरीर के आंतरिक तापमान और पाचन प्रक्रिया को रोकना है। जब आप एक दिन भर पानी नहीं पीते, तो शरीर अपने अंदर के संसाधनों को उपयोग करने लगता है। इससे टॉक्सिन्स का निकास होता है, आंतों को आराम मिलता है, और मन शांत होता है। कई पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सक इसे आध्यात्मिक शुद्धि, शरीर और मन को एक साथ शुद्ध करने का एक तरीका मानते हैं। इसके लिए कोई दवा नहीं, कोई उपकरण नहीं, बस इच्छाशक्ति और विश्वास चाहिए।

यह व्रत बहुत गंभीर है। इसे बिना तैयारी के नहीं किया जाना चाहिए। अगर आप इसे पहली बार कर रहे हैं, तो एक दिन का व्रत ही काफी है। इससे पहले दो दिन पहले हल्का भोजन लें, और व्रत के बाद धीरे-धीरे पानी और फलों से शुरुआत करें। डायबिटीज, हृदय रोग या गुर्दे की समस्या वाले लोग इसे बिल्कुल नहीं करें। आज के समय में भी कई लोग इसे डिजिटल डिटॉक्स का हिस्सा मानते हैं—जब आप फोन, सोशल मीडिया और शोर से दूर होते हैं, तो शरीर को शांति मिलती है।

भारत के कई इलाकों में, खासकर उत्तर और पश्चिमी भारत में, निर्जला व्रत का अर्थ बस उपवास नहीं, बल्कि एक तरह की तपस्या है। यहाँ लोग इसे अपने पूर्वजों के साथ जुड़ने का तरीका मानते हैं। यह व्रत बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए अलग-अलग रूप में अपनाया जाता है। कुछ लोग इसे सिर्फ आध्यात्मिक अनुभव के लिए करते हैं, तो कुछ इसे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए। यहाँ तक कि कुछ योगी इसे अपने दैनिक अभ्यास का हिस्सा बना लेते हैं।

इस लेखों के संग्रह में आपको ऐसी ताज़ा खबरें मिलेंगी जहाँ निर्जला व्रत के अनुभव, चिकित्सकीय अध्ययन, और धार्मिक परंपराओं को जोड़कर दिखाया गया है। आप जानेंगे कि कैसे एक गाँव की महिला ने इस व्रत के जरिए अपनी बीमारी दूर की, या कैसे एक वैज्ञानिक ने इसके शरीर पर प्रभाव का अध्ययन किया। ये सभी कहानियाँ आपको बताएँगी कि निर्जला व्रत केवल एक रिवाज नहीं, बल्कि एक जीवन शैली का हिस्सा बन चुका है।

छठ पूजा 2025: 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक, सूर्य को अर्घ्य देकर बनेगी आत्मा की शुद्धि
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छठ पूजा 2025: 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक, सूर्य को अर्घ्य देकर बनेगी आत्मा की शुद्धि

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  • अक्तू॰, 28 2025

छठ पूजा 2025 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक मनाई जाएगी, जिसमें बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लाखों भक्त सूर्य देव और छठ मइया को अर्घ्य देंगे। यह त्योहार विश्वभर में भारतीय परिवारों द्वारा मनाया जा रहा है।