नई $100,000 H‑1B वीजा शुल्क और वेतन‑आधारित लॉटरी प्रणाली
ट्रम्प सरकार ने H‑1B वीजा के लिए एक अभूतपूर्व परिवर्तन लागू किया। अब हर नई आवेदन पर H-1B वीजा शुल्क $100,000 वार्षिक रूप में देना होगा, जो पहले के $10,000 से दस गुना अधिक है। यह बदलाव राष्ट्रपति ट्रम्प के पिछले हप्ते के प्रोवल पर घोषणा के बाद तुरंत प्रभावी हुआ। सभी नए H‑1B केसों पर यह बड़ा शुल्क लागू होगा, जिससे यह कई सालों में सर्वोपरि परिवर्तन बन गया है।
फीस के साथ ही, होमलैंड सुरक्षा विभाग ने लॉटरी को पूरी तरह से बदलने का प्रस्ताव पेश किया है। मौजूदा प्रणाली में सालाना 85,000 वीजा होते हैं और जब आवेदन सीमा से अधिक हो जाता है, तो एक रैंडम लॉटरी के ज़रिए चयन किया जाता है। नई योजना में एक वेतन‑आधारित रैंकिंग लागू होगी, जहाँ उच्च वेतन वाले, उन्नत डिग्री वाले और विशिष्ट कौशल वाले आवेदकों को प्राथमिकता मिलेगी। उदाहरण के तौर पर, मेटा जैसी बड़ी टेक कंपनी में $150,000 वेतन वाला इंजीनियर कई एंट्रीज पा सकता है, जबकि एक स्टार्ट‑अप में $70,000 पर काम करने वाला जूनियर डेवलपर को केवल एक एंट्री दी जा सकती है।
- फीस में अब $100,000 की बाध्यता, जिससे कंपनियों का खर्चा अत्यधिक बढ़ेगा।
- वेदर‑आधारित चयन से उच्च वेतन वाले पदों को प्राथमिकता, छोटे फर्मों को नुकसान।
- भारतीय नागरिक, जो H‑1B के 71% प्राप्तकर्ता हैं, प्रभावित।
- इंडियन कम्युनिटी में तुरंत भ्रम और प्रवास रद्दीकरण की स्थिति।

परिणाम, प्रतिक्रिया और संभावित भविष्य
इस नीति से भारतीय और चीनी श्रमिकों पर विशेष असर पड़ेगा, क्योंकि USCIS के आंकड़ों के अनुसार 71% H‑1B आवेदक भारतीय और लगभग 12% चीनी हैं। तकनीकी क्षेत्र में, कंप्यूटर‑संबंधित नौकरियों का 80% से अधिक भारतीयों द्वारा ही भरा जाता है। भारत की विदेश मंत्रालय ने इस बदलाव को ‘मानवीय प्रभावों’ के साथ जुड़ी चेतावनी दी है, और कहा है कि यह परिवारों के लिए विनाशकारी परिणाम ला सकता है।
वास्तविक समय में देखा गया तो, कई भारतीय यात्रियों को सान फ्रांसिस्को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उड़ान से उतरते ही वापस अमेरिका नहीं जा पाने की चिंता ने तीन घंटे का देरी कर दिया। कई लोग नई फीस के लागू होने से पहले ही अपने वीजा को पुनः एक्टिवेट करने की कोशिश में लगे।
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता टेलर रोज़र्स ने इस कदम को अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देने के रूप में बताया। उनका तर्क है कि यह प्रणाली दुरुपयोग को रोकती है और उन कंपनियों को भरोसा देता है जो वास्तव में उच्च‑स्तरीय प्रतिभा लाना चाहते हैं। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वेतन‑आधारित लॉटरी लागू हो गई, तो H‑1B का चयन अब पूरी तरह से रैंडम नहीं रहेगा; उच्च वेतन वाले वर्ग को कई एंट्रीज़ मिलेंगी, जबकि कम वेतन वाले वर्ग को सीमित अवसर प्राप्त होंगे। इससे युवा स्नातक और एंट्री‑लेवल टीमें विदेशी कामगारों को प्राप्त करने में कठिनाई महसूस करेंगे।
विरोधी पक्ष में कहा जा रहा है कि इस नीति से टेक उद्योग में वरिष्ठ, उच्च‑वेतन वाले पदों पर अधिक दबाव पड़ेगा, जबकि स्टार्ट‑अप और छोटे फर्मों के लिए विदेशी प्रतिभा लाना लगभग असंभव हो जाएगा। यह अमेरिका की वैश्विक प्रतिभा प्रतिस्पर्धा को भी प्रभावित कर सकता है, जहाँ तेज़ गति से बदलते तकनीकी परिदृश्य में युवा कुशल कार्यकर्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हालांकि, ट्रम्प प्रशासन के अनुसार यह बदलाव दुष्प्रयोग करने वाले आउटसोर्सिंग फर्मों को रोकेगा और वीज़ा को ‘सबसे बेहतरीन और सबसे उज्ज्वल’ प्रतिभाओं तक सीमित करेगा। परंतु समय के साथ यह देखना होगा कि यह नीति किस हद तक भारतीय और अन्य विदेशी तकनीकी कार्यबल को सुगम बनाती है या बाधित करती है।