एक रसीद से उठी बहस: क्या हुआ, किसने क्या कहा
सबरीमला मंदिर की एक रसीद पर ‘मुहम्मद कुट्टी’—यानी मम्मूट्टी का आधिकारिक नाम—और ‘विशाखम्’ नक्षत्र दर्ज था। रसीद वायरल हुई और बहस गर्म। मामला यह था कि 18 मार्च 2025 को अभिनेता मोहनलाल ने भगवान अयप्पा के पवित्र पहाड़ी तीर्थ में अपने दोस्त मम्मूट्टी के नाम ‘उषा पूजा’ कराई। 26 मार्च को देवस्वम् ऑफिस से जारी वह रसीद सोशल मीडिया पर पहुंची और वहीं से विवाद शुरू हो गया।
उषा पूजा मंदिर का सुबह का नियमित विधान है। नाम और नक्षत्र लिखकर पूजा कराना केरल के मंदिरों में आम प्रथा है। यहां भी वही हुआ—बस नाम मुस्लिम निकला, और चर्चा आस्था से पहचान तक फैल गई।
मामले पर दो किस्म की आवाजें सुनाई दीं। एक ओर कट्टर रुख वाले कुछ अकाउंट्स ने इसे ‘धार्मिक मर्यादा’ के खिलाफ बताया। दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोगों ने इसे दोस्ती और सामाजिक सौहार्द का सुंदर उदाहरण कहा। केरल की सामाजिक बनावट—जहां मंदिर, चर्च और मस्जिदें एक-दूसरे के पड़ोस में हैं—ऐसे मेल-जोल से अनजान भी नहीं है।
आपत्ति की औपचारिक आवाज ओ अब्दुल्ला की पोस्ट से आई, जो जमात-ए-इस्लामी की पत्रिका मध्यमम के पूर्व संपादक रह चुके हैं। उन्होंने कहा—अगर यह मम्मूट्टी की सहमति से हुआ है तो उन्हें मुस्लिम समुदाय से माफी मांगनी चाहिए। उनका तर्क था, किसी मुस्लिम का इस तरह किसी दूसरे धर्म की पूजा में ‘प्रत्यक्ष सहमत होना’ इस्लामी उसूलों से टकराता है। वहीं समस्थ केरल जमीअतुल उलेमा से जुड़े नासर फैज़ी कूडथायी ने नरम रुख लिया—उनके मुताबिक दिक्कत तभी है जब मम्मूट्टी ने जानकर इजाजत दी हो; वरना मामला उतना गंभीर नहीं।
खुद मोहनलाल ने साफ किया कि यह दोस्त के लिए उनकी निजी प्रार्थना थी। यह भी चर्चा में आया कि यह पूजा मम्मूट्टी की सेहत को लेकर आई खबरों के बीच कराई गई। 64 साल के मोहनलाल ने रसीद के लीक होने पर चिंता जताई—मंदिर रिकॉर्ड आमतौर पर ‘नाम-नक्षत्र’ नोट करने के लिए होते हैं, सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए नहीं।
दोनों सितारों की दोस्ती तीन दशक से ज्यादा पुरानी है। करीब 55 फिल्मों में वे साथ काम कर चुके हैं और मलयालम सिनेमा की रीढ़ माने जाते हैं। ऐसे में यह कदम कई लोगों को निजी सरोकार और मानवीय भाव का विस्तार लगा। लेकिन सोशल मीडिया के तेज समय में निजी भाव भी पल में सार्वजनिक बहस बन जाते हैं—और ठीक वही हुआ।
- 18 मार्च 2025: सबरीमला में मम्मूट्टी के नाम उषा पूजा।
- 26 मार्च 2025: देवस्वम् रसीद सोशल मीडिया पर वायरल, विवाद शुरू।
- इसके बाद: मुस्लिम विद्वानों के अलग-अलग मत; सोशल प्लेटफॉर्म्स पर तीखी बहस।
धार्मिक रस्म, निजता और पहचान: बहस की परतें
हिंदू परंपरा में किसी दूसरे के नाम से ‘आराधना’ या ‘नैवेद्य’ चढ़ाना आम बात है। नाम-गोत्र लिखकर पूजा कराने का मकसद प्रार्थना को निजी बनाना होता है—किसी की भलाई, स्वास्थ्य या संकट से उबरने के लिए। इस दायरे में यह भी नहीं देखा जाता कि जिसके लिए पूजा हो रही है, वो किस धर्म का है। प्रार्थना करने वाला अपनी आस्था से कर्म करता है—यही मूलभाव है।
इस मामले में टकराव धर्मशास्त्र की बहस से ज्यादा ‘एजेंसी’ और ‘सहमति’ के सवाल पर आकर टिकता है। आलोचकों का कहना है—अगर मम्मूट्टी ने इसकी अनुमति दी, तो क्या यह उनकी धार्मिक स्थिति से समझौता है? जबकि समर्थकों का कहना है—किसी दोस्त के लिए शुभकामना देने में अनुमति या निषेध का पैमाना कैसे तय होगा, और क्या दूसरी आस्था की प्रार्थना किसी तीसरे व्यक्ति की धार्मिक पहचान को बदल देती है?
एक दूसरा पहलू निजता का है। मंदिर रसीद, जिनमें नाम और नक्षत्र दर्ज होते हैं, प्रशासनिक दस्तावेज होते हैं। उनका अनियंत्रित बाहर आना डेटा प्राइवेसी से जुड़ा प्रश्न उठाता है—क्या धार्मिक संस्थानों को ऐसे रिकॉर्ड की एक्सेस और शेयरिंग पर सख्त प्रोटोकॉल नहीं रखने चाहिए? इस वायरल रसीद ने उसी खामी को सामने रखा है।
केरल का सामाजिक परिदृश्य याद दिलाता है कि पारस्परिक धार्मिक स्थलों पर प्रार्थना या मान-मनुहार असामान्य नहीं। कई परिवार चर्च में मोमबत्ती जलाते हैं, दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं, मंदिर में नारियल फोड़ते हैं—और यह सब बिना दूसरे की आस्था पर दावा किए होता है। फर्क तब पड़ता है जब ऐसी निजी क्रियाएं डिजिटल पब्लिक स्क्वायर में ‘स्टैंड’ के रूप में पढ़ ली जाती हैं।
मामले का एक व्यावसायिक साइड-स्टोरी भी है। मोहनलाल की अगली फिल्म ‘L2: एम्पुरान’ पर सबकी नजर है और किसी भी बड़े स्टार के लिए ऐसा विवाद प्रमोशन कैलेंडर के बीच अनचाहा शोर बना देता है। इंडस्ट्री आम तौर पर ऐसे वक्त में टिप्पणी से बचती है, ताकि आग में घी न पड़े। यहां भी वही हो रहा है—औपचारिक बयानों से ज्यादा फुसफुसाहट है।
कानूनी कोण अभी सूखा है—कानून किसी भी धर्मस्थल पर किसी के लिए प्रार्थना करने से नहीं रोकता, न ही दूसरे धर्म के किसी व्यक्ति का नाम लेने से कोई वैधानिक उल्लंघन बनता है। बहस मुख्यतः धार्मिक व्याख्याओं और सामाजिक संवेदनशीलता में उलझी है।
फिलहाल तस्वीर यह है: मोहनलाल इसे निजी श्रद्धा का मामला मानते हैं; कुछ मुस्लिम विद्वान ‘सहमति’ की रेखा खींच रहे हैं; और आम दर्शक—जो दोनों सितारों को समान प्रेम करते हैं—दोस्ती और आस्था के बीच संतुलन तलाश रहे हैं। विवाद सोशल मीडिया पर उबल रहा है, लेकिन जमीन पर जीवन अपनी रफ्तार से चल रहा है—शूटिंग, रिलीज़ की तैयारी, और दो दिग्गजों की एक पुरानी दोस्ती, जो इस पूरे शोर में भी वैसी ही बनी हुई है।
parlan caem
अगस्त 20, 2025 AT 18:45ये बकवास सच्चाई के लायक नहीं है, सबरीमला मंदिर की रसीद को सोशल मीडिया पर घिघोला बनाना पूरी तरह से बेवकूफी है। धर्म की पवित्रता को इस तरह व्यापार में बदलना एक तमाशा है, और जो इसको सहन कर रहा है वह घिनौना है। असली मुद्दा यह है कि अभिनेता ने मज़ाक़िया ढंग से दोस्त की पूजा करवाई, जिसका कोई आध्यात्मिक मूल्य नहीं। इस अजीबोगरीब 'उषा पूजा' की बकवास को जनता के दिमाग में जड़ नहीं देना चाहिए।
Mayur Karanjkar
अगस्त 28, 2025 AT 15:45धार्मिक वैधता के प्रश्न को सामाजिक संवाद के दायरे में देखना चाहिए; मित्रता का इशारा व्यक्तिगत अभिप्राय से परे नहीं। इस प्रकार की अभिव्यक्ति में सामुदायिक सहिष्णुता और व्यक्तिगत स्वायत्तता का संतुलन आवश्यक है।
Sara Khan M
सितंबर 5, 2025 AT 12:45यह मामला थोड़ा जटिल दिखता है, लेकिन सभी की भावनाएँ समझने योग्य हैं 😊
shubham ingale
सितंबर 13, 2025 AT 09:45ऐसी दोस्ती की बातें मन को हल्का कर देती हैं 😊
समाज में एकजुटता की जरूरत है, तो चलिए सकारात्मक रूप से देखते हैं
Ajay Ram
सितंबर 21, 2025 AT 06:45भारत की सांस्कृतिक बहुलता में विभिन्न धर्मों के मंदिर, मस्जिद और चर्च एक ही पड़ोस में सह-अस्तित्व में रहते हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में किसी मित्र के लिए व्यक्तिगत प्रार्थना करना सामाजिक बंधन को सुदृढ़ करता है।
तथापि, जब ऐसी प्रथा सार्वजनिक मंच पर उजागर हो जाती है, तो निजी इरादे को सार्वजनिक राजनीति में बदल दिया जाता है।
यह बदलाव अक्सर मीडिया की सनसनीखेज़ी और सोशल नेटवर्क की तेज़ी से होता है।
मोहनलाल की कार्रवाई को मित्रता की अभिव्यक्ति के रूप में देखना चाहिए, न कि धार्मिक प्रोवोकेशन के रूप में।
धार्मिक रस्मों में नाम-नक्षत्र का उल्लेख सामान्य प्रथा है, और इसका उद्देश्य प्रार्थना की शक्ति को व्यक्तिगत बनाना है।
इस प्रक्रिया में विश्वासकर्ता के आस्था या सामुदायिक पहचान का प्रश्न नहीं उठता, जब तक कि वह वाक्यात्मक रूप से बोला न जाए।
हालाँकि, डेटा प्राइवेसी के संदर्भ में रसीद का लीक होना एक अलग मुद्दा उठाता है, जिसे धार्मिक संस्थानों को गंभीरता से लेना चाहिए।
निजी दस्तावेज़ों का अनधिकृत प्रसारण व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन बन सकता है।
केरल में समुदाय के बीच लंबे समय से चलती हुई पारस्परिक समझ ने इस प्रकार के घटनाओं को सहज बनाया है।
यह समझ कई बार सामाजिक तनाव को रोकने में मदद करती है, परंतु यह तब तक प्रभावी रहती है जब तक सार्वजनिक संवाद सम्मानजनक बना रहे।
इस चर्चा में दो प्रमुख धारा दिख रही हैं: एक पक्ष जो मित्रता और सामाजिक सौहार्द को महत्व देता है, और दूसरा जो धार्मिक शुद्धता की रक्षा की वकालत करता है।
दोनों ही विचारधाराओं में वैध चिंताएँ हैं, और एक संतुलित समाधान के लिए दोनों को सुना जाना आवश्यक है।
यदि मम्मूट्टी ने स्पष्ट रूप से सहमति दी है, तो यह व्यक्तिगत पूजा का मामला बन जाता है, न कि सामुदायिक हस्तक्षेप।
फिर भी, सार्वजनिक रूप में इस बात को प्रकट करना अनावश्यक रूप से विवाद को बढ़ा सकता है।
इस प्रकार, भविष्य में ऐसे मामलों में सावधानी बरतना और आधिकारिक प्रक्रियाओं का पालन करना सामाजिक शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगा।
Dr Nimit Shah
सितंबर 29, 2025 AT 03:45मित्रता के नाम पर एक कदम आगे बढ़ना कभी-कभी सीमाओं को धुंधला कर देता है, लेकिन सामाजिक जिम्मेदारी को नहीं भूलना चाहिए। उचित प्रोटोकॉल के बिना सार्वजनिक रूप में ऐसा प्रदर्शन करना थोड़ा असभ्य लगता है।
Ketan Shah
अक्तूबर 7, 2025 AT 00:45धार्मिक संस्थानों के रिकॉर्ड की गोपनीयता और सार्वजनिक पहुँच के बीच संतुलन बनाना आज के डिजिटल युग में अनिवार्य हो गया है; इस दिशा में स्पष्ट नीतियों की आवश्यकता स्पष्ट है।