जब CSIR‑NEERI ने कम‑धुआँ, कम‑शोर वाले ग्रीन पटाखे पेश किए, तो दिल्ली सरकार ने इन्हें आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर किया। इस कदम का मकसद जुलाई‑अक्टूबर 2024 की दिवाली 2024दिल्ली पर वायु‑और ध्वनि‑प्रदूषण कम करना है। इस कहानी में प्रमुख तकनीकी इनपुट, उद्योग का उत्तर और पर्यावरणीय प्रभाव सभी जुड़े हुए हैं, और ये सब निकट भविष्य में लाखों लोगों की दिवाली की रात को बदल सकते हैं।
ग्रीन पटाखों की तकनीकी आधारभूत
CSIR‑NEERI ने 2022 में एक विशेष फॉर्मूला तैयार किया, जिसमें पारंपरिक पटाखों में इस्तेमाल होने वाले बैरियम नाइट्रेट की मात्रा 60% तक घटा दी गई। इसके बजाय पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर और माइक्रो‑वॉटर‑जेल जैसे एंटी‑ऑक्सिडेंट्स को जोड़ा गया, जो जलते समय पानी के छोटे‑छोटे अणु बनाते हैं, जिससे धूल‑कण हवा में देर तक नहीं रहने पाते। इस फॉर्मूले की वजह से एरोसोल‑प्रोफ़ाइल में 30‑35% कमी देखी गई।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 किलोग्राम ग्रीन पटाखा जलाने पर औसतन 0.8 किग्रा SO₂ और 0.5 किग्रा NOₓ निकलते हैं, जबकि समान मात्रा के पारंपरिक पटाखे 1.2 किग्रा SO₂ और 0.8 किग्रा NOₓ छोड़ते हैं। खर्चे की बात करें तो नई तकनीक का उत्पादन खर्च लगभग 12% अधिक है, लेकिन प्रदूषण‑रहित उत्सव की वाजिब कीमत माना जा रहा है।
दिवाली 2024 में ग्रीन पटाखे: मांग और उपलब्धता
2023‑24 की दिवाली के लिए अनुमानित 4 मिलियन क्वाड्रन्ट (लगभग 40 लाख) पटाखों की मांग है। इनमें से लगभग 1.2 मिलियन को ग्रीन वैरिएंट्स के रूप में पेश करने की योजना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए Sri Velavan Fireworks के मालिक N. Ellangovan ने कहा, "हमने बेरियम नाइट्रेट को 40% तक घटा दिया है, और अब सिर्फ स्पार्कल, चक्र और फ्लावर पॉट मॉडल में यह फार्मूला लागू है।"
फिर भी, छोटे‑स्थानीय विक्रेताओं ने बताया कि नई फॉर्मूला के कारण स्टॉक्स में शुरुआती देरी हो रही है। इसलिए दिल्ली सरकार ने 15 अक्टूबर तक विशेष मंजूरी देना तय किया, जिससे बाजार में सप्लाई‑डिमांड का संतुलन बना रहे।
- 30‑35% कम हानिकारक गैसें (SO₂, NOₓ) का उत्सर्जन
- ध्वनि स्तर लगभग 10 dB कम (पर्यावरण मानक 120 dB से 110 dB)
- अवशेष रासायनिक पदार्थ 40% तक घटे
- वर्तमान में केवल तीन प्रकार उपलब्ध: स्पार्कल, चक्र, फ्लावर पॉट
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
भारत में हर साल दिवाली के बाद वायु गुणवत्ता में औसत 40 µg/m³ की वृद्धि दर्ज होती है, जो राष्ट्रीय मानक (PM2.5 = 60 µg/m³) के करीब पहुंच जाती है। ग्रीन पटाखों की उपयोगिता से यह वृद्धि लगभग 12 µg/m³ तक घटाने की संभावना है। इससे दमा, अस्थमा और दिल की रोगियों में अस्पताल एडमिशन कम हो सकता है, जैसा कि दिल्ली के प्रमुख फेफड़े रोग विशेषज्ञ डॉ. ऋषि गुप्ता ने बताया: "यदि 30 % कम धुआँ हम हर साल रोक दें, तो मौसमी अस्थमा के केस 20 % तक घट सकते हैं।"
ध्वनि प्रदूषण के संदर्भ में, ग्रीन पटाखे 70 dB से नीचे की ध्वनि उत्पन्न करते हैं, इसलिए घर के भीतर बुजुर्गों और पालतू जानवरों को कम झटके लगते हैं। पर्यावरणविद् संगीता राठौर ने कहा, "यह छोटा बदलाव बड़े पैमाने पर शहरी ध्वनि‑प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक कदम है।"
उद्योग और नीतियों का प्रतिक्रिया
नए नियमों पर उद्योग की प्रतिक्रियाएं मिली‑जुली हैं। एक सर्वे में 57% पटाखा निर्माताओं ने कहा कि ग्रीन फ़ॉर्मूला को अपनाने के लिए अतिरिक्त तकनीकी निवेश चाहिए, जबकि 38% ने इसे बाजार का नया अवसर बताया। सरकारी अधिकारी ने स्पष्ट किया कि 2024 में ग्रीन पटाखों का उपयोग अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक होगा – लेकिन यदि प्रदूषण स्तर लगातार उच्च रहेंगे तो सख़्त पाबंदियां लागू हो सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में, दिल्ली सरकार ने प्रदूषण‑संबंधी नियमों के तहत "पर्यावरणीय आपातकाल" का हवाला दिया, और कहा कि ग्रीन पटाखे "विज्ञानीय प्रमाणित" विकल्प हैं। अदालत ने अभी तक फैसला नहीं किया है, लेकिन अगले दो हफ्तों में सुनवाई तय है।
आगे की राह और संभावित चुनौतियां
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या ग्रीन पटाखे पूरे भारत में अपनाए जाएंगे या केवल मेट्रो शहरों में सीमित रहेंगे। पहले कदम के रूप में, CSIR‑NEERI ने 2025 के लिए एक राष्ट्रीय प्रयोगात्मक कार्यक्रम शुरू करने की योजना बनाई है, जिसमें 10 राज्य शामिल होंगे। इस कार्यक्रम का फोकस न केवल तकनीकी मानकों को तय करना है, बल्कि उपभोक्ता जागरूकता और मूल्य प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ावा देना है।
एक संभावित बाधा कीमत है। जबकि ग्रीन पटाखे पर्यावरण के लिये फायदेमंद हैं, उनका प्रति इकाई मूल्य औसत पारंपरिक पटाखे से लगभग 15% अधिक है। इसलिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए सब्साइड या कर छूट की मांग भी बढ़ रही है। यदि सरकार इस दिशा में कदम नहीं बढ़ाती, तो ग्रीन पटाखे सिर्फ एक निचले वर्ग का उपभोक्ता बन सकते हैं।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि ग्रीन पटाखों का प्रयोग पर्यावरणीय नीति और उद्योग की जिम्मेदारी के बीच एक प्रमुख तालमेल स्थापित कर रहा है। यदि सफल रहा, तो भविष्य की कोई भी त्यौहार‑समारोह एरोसोल‑फ्रेंडली होगा, जिससे भारत के शहरों की हवा साफ़‑सुथरी बनी रहेगी।
Frequently Asked Questions
ग्रीन पटाखों का उपयोग करने से वायु गुणवत्ता में कितना सुधार हो सकता है?
CSIR‑NEERI के परीक्षणों के अनुसार, ग्रीन पटाखे जलाने से SO₂ और NOₓ के उत्सर्जन में क्रमशः 30%‑35% कमी आती है, जिससे दिवाली‑के‑बाद के 48‑घंटे में PM2.5 स्तर लगभग 12 µg/m³ घट सकता है। यह सुधार विशेषकर दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में उल्लेखनीय है।
क्या ग्रीन पटाखे सभी प्रकार के पटाखे बनाते हैं?
वर्तमान में केवल तीन मॉडल – स्पार्कल, चक्र और फ्लावर पॉट – को ग्रीन फॉर्मूला के साथ प्रमाणित किया गया है। अन्य बड़े पैमाने के फायरवर्क, जैसे कि रोकेट और फटगा, अभी विकास चरण में हैं और अगले दो साल में बाजार में आने की संभावना है।
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ग्रीन पटाखों की अनुमति क्यों मांगी?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका का मुख्य कारण वायु‑और ध्वनि‑प्रदूषण को नियामक सीमाओं के भीतर रखना है। कोर्ट ने पहले भी दिवाली‑के‑बाद प्रदूषण‑स्तर को गंभीरता से देखा था, इसलिए सरकार ने ग्रीन पटाखों को वैकल्पिक, कम‑हानिकारक विकल्प के रूप में पेश किया है।
उपभोक्ताओं को ग्रीन पटाखे चुनते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
सबसे पहले, पैकेज पर CSIR‑NEERI का प्रमाणपत्र देखना चाहिए। दूसरा, कीमत में अत्यधिक अंतर नहीं होना चाहिए; अगर दाम दो‑तीन गुना ज्यादा हैं तो संभवतः कोई अतिरिक्त विशेषता नहीं है। तीसरा, उत्पादन तिथि और वैधता अवधि की जांच कर लेना चाहिए, क्योंकि रासायनिक घटकों की प्रभावशीलता समय के साथ घटती है।
भविष्य में ग्रीन पटाखों की संभावनाएं क्या हैं?
यदि सरकार सब्सिडी या कर रियायतें देती है, तो कीमत में कमी आएगी और अधिक कंपनियां इस तकनीक अपनाएंगी। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप प्रमाणन मिलने पर निर्यात की संभावनाएं भी उभर सकती हैं, जिससे भारत को एक पर्यावरण‑सफ़ाई तकनीकी निर्यातक के रूप में नई पहचान मिल सकती है।
KRS R
अक्तूबर 7, 2025 AT 22:23ग्रीन पटाखे, धुएँ में कमी तो है, पर कीमत के बारे में सोचिए।
Deepak Rajbhar
अक्तूबर 7, 2025 AT 23:13ओह भाई, ये “ग्रीन” का टैग लगा के बेच रहे हैं जैसे हम वाकई बचाव में हैं 😏। असली बात तो यह है कि आकर्षण कम, महंगाई ज्यादा, और फिर भी सरकार इसे वैध बनाने में लिपटा है। ऐसा लग रहा है जैसे हम सबको सिर्फ़ हँसी की नौदानी में डाल रहे हैं।
Uday Kiran Maloth
अक्तूबर 8, 2025 AT 00:20पर्यावरणीय नियमन के परिप्रेक्ष्य में, CSIR‑NEERI द्वारा विकसित वैकल्पिक फॉर्मूला नाइट्रेट‑आधारित रासायनिक अभिक्रियाओं की अभिव्यक्ति को न्यूनतम कर, उत्सर्जन प्रोफ़ाइल को 30‑35% तक घटाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति दर्शाता है। इस तकनीकी नवाचार के कार्यान्वयन से ध्वनि‑स्तर में 10 dB की कमी तथा SO₂, NOₓ की उत्सर्जन में उल्लेखनीय घटाव अपेक्षित है, जो कि वायु‑गुणवत्ता मानकों के अनुरूप है।
Hitesh Engg.
अक्तूबर 8, 2025 AT 01:26पहले तो यह स्पष्ट करना चाहिए कि ग्रीन पटाखों का परिचय सिर्फ़ एक विपणन रणनीति नहीं, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान का परिणाम है।
CSIR‑NEERI ने 2022 में फॉर्मूला विकसित किया, जिसमें बैरियम नाइट्रेट की मात्रा को 60% तक घटाया गया, जिससे धुएँ का उत्पादन स्वाभाविक रूप से कम हो गया।
इसमें पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर और माइक्रो‑वॉटर‑जेल के संयोजन से जलते समय जलभाप के रूप में छोटे‑छोटे कण उत्पन्न होते हैं।
परिणामस्वरूप एरोसोल‑प्रोफ़ाइल में 30‑35% की कमी देखी गई, जो शहरी वायु‑प्रदूषण को घटाने में सहायक है।
दिवाली के बाद दिल्ली में PM2.5 स्तर में औसतन 12 µg/m³ की गिरावट की संभावना है, जो स्वास्थ्य‑सेवा प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी।
इसके अलावा, ध्वनि स्तर में लगभग 10 dB की कमी होने से ध्वनि‑प्रदूषण से होने वाले सुनवाई संबंधित समस्याओं में राहत मिल सकती है।
औद्योगिक दृष्टिकोण से, नई तकनीक के उत्पादन खर्च में लगभग 12% का वृद्धि है, परन्तु यह एक सतत आर्थिक मॉडल के रूप में देखा जा सकता है।
स्वस्थ‑सुरक्षित वातावरण के लिए इस अतिरिक्त खर्च को निवेश मान कर, सरकार को उचित प्रोत्साहन नीति बनानी चाहिए।
बाजार में उपलब्ध तीन मॉडल – स्पार्कल, चक्र और फ्लावर पॉट – प्रारम्भिक चरण में पर्याप्त हैं, लेकिन भविष्य में अधिक विविधता की आवश्यकता होगी।
उत्पादन कार्यशालाएँ और गुणवत्ता‑निरीक्षण प्रोटोकॉल स्थापित करने से उपभोक्ता विश्वास बढ़ेगा।
स्थानीय विक्रेताओं को भी समय पर स्टॉक उपलब्ध कराना आवश्यक है, ताकि मांग‑आपूर्ति का संतुलन बना रहे।
सरकार द्वारा 15 अक्टूबर तक विशेष मंजूरी देना इस प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए एक सकारात्मक कदम है।
परंतु, कीमत में लगभग 15% का अंतर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए बाधा बन सकता है, जिसके समाधान में सब्सिडी और कर रियायतें आवश्यक हैं।
अंत में, यदि यह प्रौद्योगिकी सफलतापूर्वक लागू होती है, तो यह केवल दिवाली तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि अन्य त्यौहारों में भी पर्यावरण‑स्नेही विकल्प के रूप में स्थापित हो सकती है।
इसलिए, सभी हिस्सेदारों को मिलकर सहयोगात्मक रूप से इस पहल को आगे बढ़ाना चाहिए, ताकि भारत के शहरी वायु‑गुणवत्ता में दीर्घकालिक सुधार हो सके।
समग्र रूप से, ग्रीन पटाखे तकनीकी नवाचार, पर्यावरणीय लाभ और सामाजिक जिम्मेदारी का समन्वय प्रतीत होते हैं।
Zubita John
अक्तूबर 8, 2025 AT 02:33अरे भाई लोग, ये ग्रीन पटाखे तो सच्च में धूमा कम कर दिये! पर कीमत थोड़ी ज्याादा है, मै तो कहूँगा “थोड़ो-से सस्ता हो जाए तो बेस्ट”。
Govind Reddy
अक्तूबर 8, 2025 AT 03:40यदि हम सोचें कि धुएँ की हर कणिती हमारी चेतना को धुंधला करती है, तो ग्रीन पटाखा वह एक कदम है जहाँ विज्ञान दर्शाता है कि मन और प्रकृति के मेल से ही प्रगति सम्भव है।
gouri panda
अक्तूबर 8, 2025 AT 04:46बिलकुल सही कहा, ये ग्रीन पटाखे नहीं तो वैसा नहीं, लेकिन अगर हम नहीं अपनाएँ तो हमारी आने वाली पीढ़ी को धुँधली हवा में उलझते देखेंगे! चलो, अब से हर दिवाली को साफ़ रखें!
Harmeet Singh
अक्तूबर 8, 2025 AT 05:53ध्यान देने वाली बात यह है कि यदि सरकार उचित सब्सिडी प्रदान करती है, तो कीमत का अंतर कम हो जाएगा और अधिक लोगों को यह विकल्प अपनाने में मदद मिलेगी। साथ ही, स्थानीय निर्माताओं को प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी समर्थन देकर उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
patil sharan
अक्तूबर 8, 2025 AT 07:00ओह, तो अब हम सबको ग्रीन पटाखा जलाने के लिए लाइसेंस चाहिए, जैसे कि हमें हर चीज़ पर परमिशन मिलती है, वाह क्या प्रगति है!
Nitin Talwar
अक्तूबर 8, 2025 AT 08:06सांता फ्रांसिस के कागज में तो लिखा था ही नहीं कि सरकार हमें ये ग्रीन पटाखे देगी 😜, लेकिन वही बता रहे हैं कि बड़े कॉर्पोरेट टिप्सी इनको लेकर मुनाफ़ा कमाएंगे, ये सब बड़े प्लान का हिस्सा है।
onpriya sriyahan
अक्तूबर 8, 2025 AT 09:13चलो इस दिवाली को स्वच्छ बनाएं हम सब मिलकर ग्रीन पटाखे चुनें और हवा को साफ रखें हर वापर में छोटा कदम बड़ा फ़र्क लाएगा