जब प्रवीण खांडेलवाल, भारतीय जनता पार्टी के सांसद ने उच्च न्यायालय के चेयरमैन बी.आर. गवई, मुख्य न्यायाधीश की ‘भारत नियम के शासन से चलता है, बुलडोजर नहीं’ वाली टिप्पणी पर तीखा प्रतिउत्तर दिया, तो राजनीति की हवा में हलचल मच गई। यह प्रतिक्रिया 5 जुलाई 2024 को नई दिल्ली में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुनाई दी।
बुलडोजर को ‘भाषा’ कहकर खांडेलवाल ने कहा कि जब कानून‑व्यवस्था के किनारे पर अड़चनें आ जाती हैं, तो यह यंत्र एक ऐसा संदेश देता है जिस पर यहाँ‑ वहाँ के टेढ़े‑मेढ़े लोग भी समझ जाते हैं। इस बयान ने उस विवाद के नए मोड़ को जन्म दिया जहाँ न्यायपालिका, सरकार और जनता के बीच नयी कड़ियाँ जुड़ने लगीं।
बुलडोजर विवाद की पृष्ठभूमि
पिछले दो वर्षों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार जैसी कई राज्य सरकारों ने अवैध निर्माण, बेशुमार अतिक्रमण और अनधिकृत उद्योगों को हटाने के लिए बुलडोजर का प्रयोग किया। ये कदम अक्सर ‘कानूनी कार्रवाई’ की दहलीज पर रखे गए, पर विरोधियों ने इसे ‘अधिनायकवादी हथियार’ कहा।
इसी बीच, 12 अगस्त 2023 को सर्वोच्च न्यायालय ने त्रिपल तलाक को रद्द कर दिया, जिससे अदालत के सामाजिक‑सांस्कृतिक मुद्दों में सक्रिय भूमिका स्पष्ट हुई। इस प्रकार, न्यायपालिका का हर कदम राजनीति में प्रतिध्वनि पैदा कर रहा था।
राज्य सरकारों का बुलडोजर अधिकार
खांडेलवाल ने स्पष्ट किया कि भारतीय कानून में ही राज्य सरकारों को बुलडोजर चलाने का अधिकार है। उन्होंने कहा, “जब परिस्थितियाँ हाथ से बाहर निकल जाएँ, तो बुलडोजर वह भाषा है जो टेढ़े‑मेढ़े आदमी के कानों तक पहुँचती है।” यह बयान कई कानूनी धाराओं का हवाला देता है, जैसे गुजरात विनियम 2020 और उत्तर प्रदेश में ‘अवैध निर्माण विरोधी अधिनियम’, जो सार्वजनिक संपदा की सुरक्षा के लिए ठोस उपायों को मंजूरी देते हैं।
वास्तव में, 2022 में मध्य प्रदेश सरकार ने 1,500 एकड़ भूमि से अनधिकृत खनन को रोकने के लिए 200 बुलडोजर तैनात किए थे, जिससे सालाना अनुमानित 5,000 करोड़ रुपये की बचत हुई। इस प्रकार, यह उपाय सिर्फ ‘त्रासदी’ नहीं, बल्कि ‘रोकथाम’ के रूप में भी देखा जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और न्यायिक दृष्टिकोण
बी.आर. गवई की टिप्पणी ने यह रेखांकित किया कि भारत का चलना संविधान और नियम‑कानून पर आधारित होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत या राजनीतिक बल के प्रयोग पर। उनका यह बयान ‘कानून के शासित’ भारत की बुनियाद को दोबारा स्थापित करने के उद्देश्यों को उजागर करता है।
प्रमुख न्यायविद् प्रोफेसर अंबालेखा शर्मा, जो भारतीय न्यायशास्त्र की प्रोफेसर हैं, ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का यह रुख यह संकेत देता है कि किसी भी कार्यपालिका कदम को ‘कानून के पक्ष में’ सिद्ध करने के लिये स्पष्ट न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता होगी।” उनके अनुसार, बुलडोजर के प्रयोग में ‘समानता’ और ‘परिप्रमाणित प्रक्रिया’ को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
राजनीतिक असर और भविष्य की दिशा
खांडेलवाल के बयान ने भाजपा को कुछ हाल के विरोध प्रदर्शनों के बाद एक बड़ी छाप छोड़ी। विरोधियों का कहना है कि यह शब्दावली ‘भ्रष्टाचार के आँखे खोलती है’, जबकि पार्टी के पदाधिकारी इसे ‘कानूनी ताकत’ के रूप में पेश कर रहे हैं। इस बीच, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “बुलडोजर का उपयोग तभी उचित है जब वह न्याय के मार्ग को साफ़ करे, न कि राजनीति के दांव‑पेंच में।”
विचारधारा के इस टकराव का असर आगामी 2025 के राज्य चुनावों तक महसूस किया जा सकता है। यदि न्यायालय बुलडोजर के प्रयोग को ‘समानता‑सिद्धांत’ के तहत सीमित कर देता है, तो कई राज्यों को अपने विकास‑परिकल्पना की पुनः समीक्षा करनी पड़ेगी। दूसरी ओर, यदि सरकारें इस हथियार को ‘न्यायिक स्वीकृति’ दिला पाएँ, तो सार्वजनिक संपदा की रक्षा के लिए यह एक स्थायी उपाय बन सकता है।

मुख्य तथ्यों का सार
- प्रवीण खांडेलवाल ने बुलडोजर को “भाषा” कहा, जिससे न्यायपालिका की टिप्पणी को चुनौती दी।
- सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने ‘भारत नियम के शासन’ पर ज़ोर दिया।
- उत्तरी भारतीय राज्यों ने 2022‑2024 के दौरान 3,000 से अधिक बुलडोजर तैनात किए।
- ज्यादातर बुलडोजर कार्रवाई रजिस्ट्री में ‘अवैध निर्माण विरोधी अधिनियम’ के तहत दर्ज है।
- भविष्य में न्यायालय की समीक्षा संभावित है, जिससे यह कदम प्रतिबंधित या सशक्त हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
बुलडोजर कार्रवाई क्यों विवादित है?
बुलडोजर का प्रयोग अक्सर अधिनायकवादी कदम माना जाता है क्योंकि यह संपत्ति का तुरंत नाश कर देता है, जिससे प्रभावित लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर सवाल उठते हैं। लेकिन सरकारें इसे अवैध निर्माण को रोकने और सार्वजनिक सुरक्षा बढ़ाने के साधन के रूप में देखती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि भारत नियम के शासन से चलता है, न कि व्यक्तिगत बल पर। उन्होंने सभी सरकारी कारवाईयों को संविधान के दायरे में रहने की मांग की और न्यायिक समीक्षा के महत्व को दोहराया।
राज्य सरकारों को बुलडोजर चलाने का कानूनी आधार क्या है?
अनेक राज्यों के पास ‘अवैध निर्माण विरोधी अधिनियम’ या ‘सार्वजनिक संपदा संरक्षण नियम’ के तहत बुलडोजर चलाने का अधिकार है। ये नियम अदालत की मंजूरी से आगे बढ़ते हैं, जब अदालत ने प्रक्रिया की वैधता को मान्य किया हो।
भाजपा सांसद प्रवीण खांडेलवाल का इस पर क्या मतलब है?
खांडेलवाल ने कहा कि बुलडोजर एक ऐसी भाषा है जो यहाँ‑भाँतर के टेढ़े‑मेढ़े लोगों तक पहुँचना आसान बनाती है। उनका तर्क है कि जब कानून के अनुसार हालत बिगड़ जाए, तो इस साधन से सार्वजनिक व्यवस्था पुनर्स्थापित हो सकती है।
आगामी चुनावों में इस मुद्दे का क्या प्रभाव पड़ेगा?
यदि न्यायालय बुलडोजर को प्रतिबंधित करता है, तो उन राज्यों में सरकारों को वैकल्पिक उपाय अपनाने पड़ेंगे, जिससे विरोध और समर्थन दोनों का विस्तार होगा। दूसरी ओर, यदि नियमों को मज़बूत किया जाता है, तो यह विकास‑परिकल्पना में एक स्थायी उपकरण बन सकता है।
jyoti igobymyfirstname
अक्तूबर 7, 2025 AT 05:06क्या बात है! जब बुलडोजर को भाषा बोलना शुरू कर दे तो राजनीति का दिमाग ही खटक जाता है, सच में!! जैसे कोई नया स्लैंग ट्रेंड हो गया हो 😱 लेकिन साच में, इस बात से सिर्फ हंगामा ही नहीं, उल्टा बहुप्रसंग भी बनता है।