आलिया भट्ट की 'जिगरा' फिल्म समीक्षा: अच्छी शुरुआत के बावजूद असरहीन प्रदर्शन

मनोरंजन आलिया भट्ट की 'जिगरा' फिल्म समीक्षा: अच्छी शुरुआत के बावजूद असरहीन प्रदर्शन

विशाल आर्टिकल: 'जिगरा' फिल्म समीक्षा

वासन बाला द्वारा निर्देशित फिल्म 'जिगरा' ने रिलीज से पहले ही दर्शकों में बहुत उत्सुकता जगा रखी थी। आलिया भट्ट के शानदार अभिनय के लिए ख्यात अभिनेता, फिल्म की अग्रणी भूमिका में हैं और उनके साथ हैं वेदांग रैना और आकांशा रंजन कपूर। फिल्म की कहानी एक बहन के जुनून पर आधारित है, जो अपने भाई के लिए न्याय मांगने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। यह विचार भले ही दिलचस्प हो, लेकिन फिल्म की पटकथा इसे वास्तविकता में साकार करने में चूक जाती है।

आलिया भट्ट ने अपनी भूमिका में बहुत मेहनत डाली है। उनकी अदायगी में वह कच्चे भावनाओं और दृढ़ निश्चय का प्रदर्शन करती हैं जो दर्शकों को भावुक कर सकती है। लेकिन इनके बावजूद, 'जिगरा' की कथा अपने मुख्य उद्देश्य को पूर्णतः साधने में विफल रहती है। फिल्म के दर्जनों दृश्य ऐसे हैं जो बिना किसी ठोस कारण के जल्दीबाजी में जोड़ दिए गए प्रतीत होते हैं।

कहानी का बड़ा हिस्सा बहुत तेजी से आगे बढ़ता है, जिसमें न केवल कहानी की गहराई छूट जाती है बल्कि पात्रों का विकास भी आधा-अधूरा रह जाता है। बहुत सारे दर्शकों ने महसूस किया है कि फिल्म के कई हिस्से या तो अधूरे हैं या गलत तरीके से प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे कहानी की सार्थकता खो जाती है।

वासन बाला, जिन्होंने पहले भी कुछ संवेदनशील विषयों पर फिल्म बनाई हैं, 'जिगरा' को एक शानदार तरीके से आगे बढ़ाने की उम्मीद रखते थे। उनकी दिशा का अद्बुत विजन एक स्क्रिप्ट द्वारा बाधित होता है जो अपने विचारों को पूरी तरह से साकार करने में असमर्थ साबित होती है। इस फिल्म में जितनी ऊँची उम्मीदें थी, उसमें आलोचकों और दर्शकों ने वह गहराई नहीं पाई, जिससे कि यह फिल्म खुद को एक स्वतंत्र सिनेमाई अनुभव के रूप में पहचान बना सके।

एक प्रमुख कमजोरी यह थी कि फिल्म पटरी पर टिक नहीं पाती। एक तरफ मेलोड्रामा का दौरा है और दूसरी तरफ एक्शन का। दोनों के बीच का संतुलन गलत हो जाता है, जिससे एक अनियंत्रित प्रस्तुति उभरकर आती है। आलिया भट्ट की जोशीली परफॉर्मेंस भी फिल्म के इस अधूरेपन को नहीं भर पाती।

क्या हैं फिल्म के प्रमुख मुद्दे?

फिल्म के प्रमुख मुद्दों में से एक यह है कि इसके मुख्य तत्व एलानबाजी के स्तर पर रहते हैं। वेदांग रैना और आकांशा रंजन कपूर की भूमिका में भी निरंतरता की कमी है। लेखक और निर्देशक के बीच इस फिल्Stmt में तालमेल की कमी यह दर्शाती है कि कहानी में कैसे सीमाएं बनी थीं।

उम्मीदें और वास्तविकता

आखिरकार, 'जिगरा' एक ऐसी फिल्म बन के रह जाती है जिसकी उम्मीदें तो बहुत थीं लेकिन उन्हें हकीकत में पूरी तरह नहीं बदल पाई। इसकी कहानी और पटकथा दोनों ही इसे एक प्रभावी मनोरंजन के रूप में स्थापित करने में असफल रहती हैं। इसकी आलोचना विश्लेषक और दर्शक दोनों ही कर रहे हैं, और इसमें वर्तन करने की आवश्यकता है।

इस फिल्म से यह स्पष्ट होता है कि भले ही किसी फिल्म का आधार कितना भी मजबूत क्यों न हो, जब तक इसकी पटकथा और प्रस्तुति मजबूत नहीं होती, वह फिल्मों के श्रोताओं की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सकती।

अंत में, एक अच्छी कहानी, सटीक निर्देशन, और महारतपूर्ण अभिनय का मेल ही किसी फिल्म को सफल बनाता है। 'जिगरा' में इनमें से कुछ भी पूर्ण रूप से शामिल नहीं हुआ और यही इसका माइनस पॉइंट बन गया। शायद फिल्म निर्माता को इन पहलुओं पर ध्यान देकर आने वाले प्रोजेक्ट में सुधार की चिंता करनी चाहिए।

10 टिप्पणि

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    Joseph Prakash

    अक्तूबर 11, 2024 AT 14:40

    आलिया की मेहनत देखी, पर फिल्म ने दिल नहीं छुआ 😐

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    Arun 3D Creators

    अक्तूबर 15, 2024 AT 13:06

    भविष्य की सोच को इस फिल्म में देखना था, पर कहानी ने जहाँ-जैसे रास्ता छीन लिया। यह जिगरा केवल नाम का निकला, सच में गहराई नहीं मिली। अंत में वही पुरानी दुविधा रह गई कि भावनाओं को कैसे पिरोया जाए।

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    RAVINDRA HARBALA

    अक्तूबर 19, 2024 AT 11:33

    पटकथा का स्तर काफ़ी घटिया है, यह कोई नई खोज नहीं है। निर्देशक ने बेसिक स्ट्रक्चर को ही बिगाड़ दिया, इसलिए फिल्म स्थिर लगती है। अभिनय की कोशिशें सराहनीय हैं, पर समग्र वस्तु में कमी स्पष्ट है। कुल मिलाकर, यह एक बेतुका प्रयास है।

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    Vipul Kumar

    अक्तूबर 23, 2024 AT 10:00

    फिल्म की कहानी में संभावनाएँ थीं, लेकिन निष्पादन में कई खामियाँ उभर आईं। आलिया भट्ट ने अपनी भूमिका में पूरी तरह डूबने की कोशिश की, फिर भी पात्रों के बीच के संबंधों को गहरा करने का अवसर नहीं मिला। वासन बाला की दिशा-निर्देशन शैली अक्सर भावनात्मक गहराई लाती है, लेकिन इस बार पटकथा उस गहराई को साकार नहीं कर पाई। मूल कथा का केंद्र भावनात्मक जुदाई था, जबकि स्क्रीन पर दिखाए गए दृश्यों का टेम्पो अक्सर असंगत रहता है। कई सीन में संगीत और बैकग्राउंड स्कोर अचानक बदल जाता है, जिससे दर्शक को असहजता होती है। वेदांग रैना और आकांशा रंजन कपूर की कोशिशें सराहनीय हैं, पर उनका किरदार विकास आधा-अधूरा रख जाता है। फिल्म में एक्शन और मेलोडी के बीच का संतुलन अक्सर टूट जाता है, जिससे कथा के प्रवाह में बाधा आती है। पात्रों के संवाद बहुत बार प्रयोगात्मक लगते हैं, लेकिन वास्तविकता की कमी उन्हें गूँजदार बनाती है। क्लाइमैक्स की तैयारी में तनाव का निर्माण ठीक ढंग से नहीं हुआ, जिससे अंतिम मोड़ पर प्रभाव कम पड़ता है। समायोजन की कमी के कारण कुछ दृश्यों को हटाने से बेहतर होता, जिससे कहानी अधिक सुसंगत बनती। समीक्षकों ने भी इसी बात को दोहराया है, कि फिल्म में संभावनाओं का दुरुपयोग हुआ है। स्थिति को देखते हुए, यदि निर्देशक ने कहानी को दोबारा से परख लिया होता, तो परिणाम अलग हो सकता था। दर्शकों को उम्मीद थी कि आलिया के जज्बे को देखेंगे, पर स्क्रीन पर वह जज्बा अक्सर छपछपा सा लगता है। फिल्म का संदेश स्पष्ट था, लेकिन उसे प्रभावी ढंग से पेश नहीं किया गया। भविष्य में यदि निर्माता इस तरह के प्रोजेक्ट लेते हैं, तो पटकथा और संपादन पर अधिक ध्यान देना अत्यावश्यक है।

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    Priyanka Ambardar

    अक्तूबर 27, 2024 AT 08:26

    अगर भारतीय फ़िल्में असली जुनून दिखा पातीं तो इस तरह की आलोचना नहीं होती :)

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    sujaya selalu jaya

    अक्तूबर 31, 2024 AT 06:53

    आपकी भावना ठीक है, पर हमें विश्लेषणात्मक तौर पर देखना चाहिए। कथा के कई पहलू अस्पष्ट हैं।

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    Ranveer Tyagi

    नवंबर 4, 2024 AT 05:20

    देखिए, फिल्म के पास एक बुनियादी विचार था, लेकिन उसे पॉलिश नहीं किया गया, इसलिए परिणाम निराशाजनक है, आपको स्क्रिप्ट पर गहरा ध्यान देना चाहिए, संवादों को फिर से लिखना चाहिए, और एडीटिंग में सुधार लाना चाहिए, इससे अगली बार बेहतर हो सकता है।

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    Tejas Srivastava

    नवंबर 8, 2024 AT 03:46

    वास्तव में, इस फिल्म को देखना एक डांसिंग बॉक्सिंग मैच जैसा लगा, जहाँ हर पंच में थोड़ा मैला नाच रहा था, और संगीत की ताल कभी साथ नहीं देती थी, परिणामस्वरूप दिल की धड़कन भी खो गई।

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    JAYESH DHUMAK

    नवंबर 12, 2024 AT 02:13

    विषय का चयन प्रशंसनीय था, परन्तु कार्यान्वयन में कई बाधाएँ उभरीं। यह स्पष्ट है कि निर्देशक ने कहानी को सुव्यवस्थित करने में विफलता दिखायी। दर्शक के भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ाने के लिए गहन संशोधन आवश्यक है। अतः भविष्य के प्रोजेक्ट्स में दृढ़ पटकथा निर्माण पर अधिक जोर देना आवश्यक है। इस प्रकार की समीक्षात्मक दृष्टिकोण उद्योग को सकारात्मक दिशा में ले जा सकता है।

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    Santosh Sharma

    नवंबर 16, 2024 AT 00:40

    हर फिल्म से सीखना चाहिए, यह अनुभव भविष्य के लिए मार्गदर्शक बनता है। आशा है अगली रिलीज़ अधिक प्रभावशाली होगी।

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