भारत-यूके एफटीए: बड़ी डील की दहलीज पर दोनों देश
लंदन में इन दिनों कुछ ऐसा चल रहा है, जो भारत और यूके के व्यापारिक रिश्तों का नया चैप्टर लिख सकता है। भारत-यूके एफटीए यानी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर दोनों देश के बीच ना सिर्फ बात आगे बढ़ चुकी है, बल्कि अब अंतिम दौर के तकनीकी मसलों पर जोरदार बहस हो रही है। पहले उम्मीद थी कि अप्रैल 29 तक सब तय हो जाएगा, लेकिन निवेश और बाजार पहुंच जैसी जटिल चीजों को लेकर बातचीत लंबी खिंच गई।
एफटीए की शुरुआत जनवरी 2021 में हुई थी जब ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन उत्साहित थे। लेकिन ब्रिटेन की राजनीति इतने उतार-चढ़ावों से गुज़री कि कई महीनों तक बातचीत ठप रही। बात फिर से ट्रैक पर फरवरी 2025 में आई, जब नई सरकार के साथ 14वां दौर तेजी से आगे बढ़ा। अब दोनों देशों के अहम अधिकारी—भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और यूके के ट्रेड सेक्रेटरी जोनाथन रेनॉल्ड्स—अपने-अपने प्रयासों में जुटे हैं। 24 फरवरी को ग्यारह महीने की खामोशी के बाद दोनों देशों ने दोबारा बातचीत शुरू करने का ऐलान किया।

क्या है बड़ा ट्विस्ट: निवेश, बाजार पहुंच और डबल कारोबार का टारगेट
इस बार बातचीत का फोकस निवेश और बाजार पहुंच जैसे बेहद तकनीकी मुद्दों पर है। ये वही मसले हैं, जो अक्सर बड़े ट्रेड एग्रीमेंट्स में सबसे जटिल साबित होते हैं। हाल ही में 9 अप्रैल को भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी यूके गईं और वहां के पीएम कीयर स्टार्मर, चांसलर रैचल रीव्स और रेनॉल्ड्स से मुलाकात की। इस विजिट से वार्ता को ताजगी मिली और दोनों पक़्षों पर दबाव भी बढ़ा कि इस दशक में कुछ ठोस अचीव करना है।
एफटीए से दोनों देशों को बड़ी उम्मीदें हैं। खासकर भारत-यूके द्विपक्षीय माल का व्यापार अभी 20 अरब डॉलर के आसपास है, जिसे अगले दस साल में 40 अरब डॉलर तक पहुँचाने का प्लान है। ये सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि यहां से उभरती संभावनाओं की तस्वीर है—नया व्यापार, नई नौकरियां, और निवेश का बड़ा मौका।
उद्योग जगत की नजरें भी लंदन-नई दिल्ली के बीच चल रही हर खबर पर टिकी हैं। अगर एफटीए सफल होता है तो टेक, ऑटो, फार्मा, फूड प्रोसेसिंग जैसे सेक्टरों के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं। दूसरे देशों के मुकाबले भारत और ब्रिटेन का इतिहास और रिलेशनशिप दोनों में गहराई है, जिससे डील की संभावनाएं और मजबूत होती हैं। ट्रेड मंत्री से लेकर फाइनेंस मिनिस्टर तक लगातार एक्शन मोड में दिख रहे हैं क्योंकि 2025 के अंत तक डील फाइनल करने का प्रेशर दोनों तरफ है।
अब देखना यही है कि मई से जुलाई के महीने किस तरह गतिरोध सुलझाते हैं, क्या वाकई निवेश और बाजार पहुंच पर ठोस सहमति बन सकती है, या फिर कोई नया पेंच आने वाला है। एक बात तो साफ है—भारत-यूके एफटीए एक साधारण बातचीत नहीं, बल्कि दोनों देशों के व्यापारिक फ्यूचर का बड़ा दांव है।