भारत में ग्रीन ट्रांजिशन: बढ़ते विकास के बीच ऊर्जा बदलाव की चुनौतियां
आर्थिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा का संघर्ष भारत जैसे देशों के लिए नया नहीं है, लेकिन ग्रीन ट्रांजिशन ने हालात को और भी जटिल बना दिया है। जब देश बिजली, परिवहन और उद्योग के क्षेत्र में हरित बदलाव की ओर बढ़ता है, तो अक्सर सामने आता है सवाल – इस रास्ते पर चलकर क्या हम मौजूदा आर्थिक तरक्की को गंवा देंगे या नए अवसर पैदा होंगे?
देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग, ग्रीन हाइड्रोजन पर रिसर्च और इंडस्ट्री को आधुनिक रूप देने की कोशिशें इस ट्रांजिशन की अहम कड़ी हैं। उदाहरण के लिए, नेताओं ने हाल ही में बड़ी ऑटो कंपनियों और सार्वजनिक परिवहन एजेंसियों से EV (इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) को तेजी से अपनाने की अपील की है। वहीं, फर्टिलाइजर, स्टील और सीमेंट जैसी भारी इंडस्ट्री में ग्रीन हाइड्रोजन के पायलट प्रोजेक्ट शुरू हो चुके हैं। कृषि सेक्टर भी सौर ऊर्जा और ड्रिप इर्रीगेशन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर रहा है। इन सब पहलुओं से उत्पादन क्षमता में इजाफा तो होता है, लेकिन लागत और तकनीकी बदलावों के साथ-साथ बड़ी आर्थिक चुनौतियां भी आती हैं।
विकासशील देश अभी भी ऊर्जा सुरक्षा और बड़ी आबादी की बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता देते हैं। यहां आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी पड़ने का डर हमेशा बना रहता है, खासकर जब औद्योगिक यूनिट्स को नवीनीकरण के दबाव में बंद करना पड़े या लाखों लोगों की रोज़गार की स्थिति डांवाडोल हो जाए। कई किसान और मजदूर मानते हैं कि अचानक हुए बदलाव उनके लिए नई परेशानी का सबब बन सकते हैं, क्योंकि स्किल्स या टेक्नोलॉजी का फासला उन्हें पीछे छोड़ सकता है।
समाधान और आगे की राह: सहयोग-समझौता और फंडिंग की दरकार
इस बदलती तस्वीर में निष्पक्षता और संतुलन का सवाल भी उठता है। क्लीन एनर्जी का फायदा हर तबके तक पहुंचे, इसके लिए सरकारें सस्ती दरों पर बिजली और तकनीक उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन गांवों और कस्बों के लिए बुनियादी सुविधाएं पहुंचाना अब भी चुनौती है। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ जैसे चिन्मय बेहरा और लबन्या प्रकाश जेना बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि ग्लोबल नॉर्थ, यानी विकसित देश, विकासशील देशों को रियायती फंड्स और ग्रांट्स दें। जिससे भारत जैसे देश अपनी योजनाओं को जल्दी और स्थिरता के साथ लागू कर सकें।
एक बड़ा मसला यह भी है कि भारत जैसे देशों में एक ही वक्त पर तेज आर्थिक विकास के कई प्रोजेक्ट्स चलते रहते हैं – सड़कों का निर्माण, आवास योजनाएं और रोजगार। इन सभी क्षेत्रों को ग्रीन पैमाने पर लाना आसान नहीं। नीति निर्माताओं के सामने सवाल है कि वे कब, किस क्षेत्र को प्राथमिकता दें और कैसे फंडिंग मुहैया कराएं।
सरकार, बैंक, और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने मिलकर कई योजनाएं बनाई हैं – जैसे रीस्किलिंग प्रोग्राम, ग्रीन बॉन्ड्स के जरिए फंडिंग, और विदेशी सहयोग से मेगा प्रोजेक्ट्स की शुरुआत। अब वक्त है कि इन पहलों को नीचे तक, स्थानीय स्तर पर लागू किया जाए। ग्रामीण महिलाओं से लेकर युवा टेक्नोक्रेट्स तक, हर वर्ग को इस बदलाव का हिस्सा बनाना अहम है। तभी ग्रीन ट्रांजिशन से जुड़े क्लाइमेट गोल्स और विकास का सही संतुलन कायम होगा।