आरबीआई की मौद्रिक नीति बैठक
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के नतीजों का सभी को बेसब्री से इंतजार है। बुधवार को मुंबई में शुरू हुई इस बैठक में यह निर्णय लिया जाएगा कि वर्तमान में 6.50% पर स्थित रेपो दर में कोई बदलाव किया जाएगा या नहीं। इस बार की बैठक विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पिछले कुछ समय से उच्च स्तर पर कायम मुद्रास्फीति के मद्देनजर हो रही है।
रेपो दर वह ब्याज दर होती है जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। रेपो दर में बदलाव का सीधा असर आम जनता और कंपनियों द्वारा लिए जाने वाले लोन की EMI पर पड़ता है। यदि रेपो दर घटाई जाती है, तो लोन की EMI में कमी आती है और बढ़ाई जाती है, तो EMI बढ़ जाती है।
रेपो दर और मुद्रास्फीति
मौजूदा 6.50% पर स्थित रेपो दर को आखिरी बार फरवरी 2023 में 25 बेसिस पॉइंट्स से बढ़ाया गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। पिछले वित्त वर्ष में आरबीआई ने मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए रेपो दर को लगातार छह बार बढ़ाया था, जिससे कुल मिलाकर 2.50% की वृद्धि हुई थी। इस वित्तीय वर्ष में अभी तक दर में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
मुद्रास्फीति के आंकड़े
चालू महीने के अंत में मई का उपभोक्ता मुद्रास्फीति दर जारी किया जाएगा। एसबीआई रिसर्च के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक यह दर 5% से नीचे बनी रहेगी। अप्रैल में थोक मुद्रास्फीति पांच महीने के उच्चतम स्तर 1.26% पर रही, जबकि उपभोक्ता मुद्रास्फीति 4.83% पर रही। मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से यह देखना होगा कि आरबीआई आगे की नीतियों में क्या रणनीति बनाती है।
शेयर बाजार पर संभावित प्रभाव
आरबीआई की इस घोषणा का शेयर बाजार पर भी गहरा असर होने की संभावना है। निवेशक और विश्लेषक इस बात पर नजर रखेंगे कि रेपो दर में कोई बदलाव होता है या नहीं, और यदि होता है, तो कितना। रेपो दर में किसी भी प्रकार के बदलाव का सीधा असर शेयर बाजार के संवेदी सूचकांकों और विभिन्न सेक्टरों पर पड़ता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि रेपो दर घटाई जाती है, तो यह शेयर बाजार के लिए सकारात्मक संकेत होगा। इससे कंपनियों के लिए ऋण लेने की लागत कम होगी और निवेशकों की धारणा में सुधार हो सकता है। लेकिन यदि दर बढ़ाई जाती है, तो विपरीत प्रभाव भी दिखाई दे सकता है।
भविष्य की दिशा
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति के सदस्य, जिसमें आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास भी शामिल हैं, विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे, जिसमें मुद्रास्फीति, आर्थिक वृद्धि, और वैश्विक आर्थिक वातावरण शामिल हैं। इस बैठक का परिणाम न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा, बल्कि विश्व स्तर पर भी इसके प्रभाव देखे जा सकते हैं।
भविष्य में रेपो दर में किसी भी प्रकार के बदलाव का संकेत अर्थव्यवस्था के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाएगा, जिसमें रोजगार, खपत, निवेश, और निर्यात शामिल हैं। प्रत्येक निर्णय आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने या रोकने के लिए आरबीआई की उद्देश्यपूर्ण योजना को प्रतिबिंबित करता है।
उपसंहार
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक और उसके परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण समय पर दिशा देने वाले कारक होंगे। विशेषज्ञों का ध्यान इस बात पर रहेगा कि रेपो दर की दिशा में क्या परिवर्तन होते हैं और इसके परिणामस्वरूप आम जनजीवन, लोन EMI, और शेयर बाजार पर क्या प्रभाव पड़ता है। आने वाले दिनों में इन नीतिगत घोषणाओं का असर हर क्षेत्र में स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।